बात पुराने दिनो की है जब राजा महराजा, बादशाह-गुलामहुआ करते थे। उस समय मुकदमे के फैसले आज के तरह लेट नही आते थे। आज तो फैसले मिलने मे आपकी कई पुस्ते निपट जाएगी। पहले चट गुनाह पट सजा की नीति थी। फैसले राजा-महराजा, बादशाहो के हाथ मे जो था।
बादशाह का एक दरवारी जो उनके चहेतो मे था। हरप्रकार से सज्जन व्यक्ति यू समझे बादशाह कादाया हाथ था यूसुफ ,अक्सर बादशाह उससे सलाह मशविरा लिया करते थे।एकदिन इलाके मे एक शेर ने हमला कर दिया । शैर एक बच्चे को उठाकर जंगल की ओर भाग गया । गाँव मे अफरातफरी का माहौल बन गया।
किसी को पता भी नही चला यूसुफ कब शेर का पीछा करते हुए जंगल चला गया। वहाँ उसने शेर को मारने के लिए हथियार चलाई , भाला लगते ही उसके कानो मे इन्सान की आवाज आई । वह दौङकर वहाँ पहुँचा , देखा तो वह घबरा गया उसका पङोसी खून से लथपथ पङा अतिम सां ले रहा था । वह उसे उठाकर घर तक लाया । अपने पति को मरा देख पत्नी दहाङ मार-मार कर रोने लगी।
अगले दिन दरवार मे यूसुफ को पेश काया गया, उसने अपनी गलती मान ली। बादशाह का कानून था मौत के बदले मौत। सबकी निगाहे बादशाह पर लगी थी। पूरे दरवार मे सन्नाटा पसरा था। आज बादशाह के लिए काफी मुश्किल था फैसला सुनाना,क्योकि कटघङे मे उनका सबसे प्यारा और विश्वासी खङा था। अं मे वह घङी आ गयी । वादशाह ने फैसला सुनाया , मै जानता हूँ आप सभी फैसले के इंतजार मे है, लेकिन न्याय सबके लिए बराबर होता यूसुफ को सजाए मौत दी जाती है। यह कहते हुए वादशाह के गले रूद्ध गए। दरवारी अपनी अपनी समझ से बाते करने लगे ,कोई बादशाह को सही कहता तो किसी का मत था यूसुफ ने अनजाने मे ऐसा किया उसे माफ कर देनी चाहिए थी।
आज यूसुफ को फासी लगनी थी । उसे स्नान के बाद नमाज अदा कर फांसीघर लाया गया । यूसुफ के गले मे फांसी के फंदे डाले गए , तख्ते पर उसके पैर थे बस तख्ते खींचते ही उसकी विदाई हो जानी तय थी। बादशाह ने मंत्री को बुलाकर आदेश दिया आप यूसुफ से उसकी अंतिम इच्छा लिखबाकर मेरे पास लाऐ। मंत्री बादशाह को सलाम कर चला गया।
मत्री के कहने पर यूसुफ ने अपनी अंतिम इच्छा लिखकर दे दी। मंत्री वह कागज लाकर बादशाह को दिया। उसे पढने के बाद बादशाह ने मंत्री से कहा यह इच्छा तो पूरी नही की जा सकती इससे पहली वाली कोई इच्छा हो तो लिखबाकर लाऐ। मंत्री फिर यूसुफ के हाथो मे कागज देते हुए कहा अतिम से पहले वाली कोई इच्छा लिखकर दे ,आपकी अतिम इच्छा पूरी नही की जा सकती। यूसुफ ने लिखकर कागज मंत्री के हाथो मे दे दिया। मत्री ने कहा हुजूर यह रही यूसुफ की अतिम इच्छा से पहले वाली इच्छा। बादशाह ने उसे पढने के बाद कहा उसकी यह मां भी मै पूरी नही कर सकता । आप जाऐ जाकर उसकी दूसरी इच्छा लेकर आऐ। मंत्री फिर वहाँ जाकर यूसुफ से उसकी इच्छा लिखवाकर वापस बादशाह के पास जाते हुए सोच रहा था अब इसबार बादशाह अनुमति दे देगे । पर कागज पढकर बादशाह ने फिर कह दिया यह भी मै पूरा नही कर पाउँगा आप अतिम से पहले,पहले से पहले, फिर उससे पहले फिर उससे भी पहले ,फिर उसस पहले जो उसकी इच्छा हो पूछकर लाऐ। । अब तक मंत्री थक चूका था साथ ही राजा पर मन ही मन झलाता हुआ चला जा रहा था।
उधर सुबह से शाम हो गई थी फंदे गले मे लगाए हुए यूसुफ भी थक गया था ,सोच रहा था अभी मैने बहुत छोटी सी इच्छा बताई है बादशाह जरूर कबूल कर लेगे। यूसुफ यह सोच ही रहा था कि उसकी नजर मंत्री पर गई जो भारी कदमो से इसकी ओर आ रहे थे । आते ही उन्होने फिर यूसुफ से कोई और इच्छा बताने को कहा। अब तक यूसुफ पूरी तरह टूट चूका था उसने कागज पर लिखा और मंत्री के हाथ मे कागज पकङा दिया । मंत्री कागज पकङाते सोच रहा था उसे फिर कोई नई इच्छा लिखवाने के लिए भेज दिया जाएगा । बादशाह मं की ओर मुख्तिव हुए और बोले यूसुफ ने लिखा है-हुजूर आप मुझे जल्द से जल्द फांसी देने कि फरमान अता फरमाए । मंत्रीजी अब आप जाए और यूसुफ की यह इच्छा पूरी कर दे। मंत्री
यूसुफ से कहा आपने जो अर्जी बादशाह को भेजी थी वह कबूल कर ली गई । यूसुफ को फांसी दे दी गई।
मंत्री के समझ मे यह बात नही आ रही थी बादशाह ने क्यो ऐसा किया । वह बादशाह के पास पहुँचकर बोला -हुजूर मेरी बेअदबी के लिए मुआफ करे जहापनाह , यूसुफ ने जो इच्छा बताई थी उसे पूरा करने मे आप पूरी तरह सक्षम थे फिर क्पू .....
बादशाह ने मंत्री की ओर कागज का पुलिदा बढाते हुए कहा आप इसमे यूसुफ की जितनी भी इच्छा है पूरी कर दे । मै समझता हूँ आपको समझ लग गई होगी । इन्सान की कोई भी इच्छा अंतिम इच्छा हो ही नही सकती ।
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