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बच्चे का मन

मेरे माता-पिता शाकाहारी थे और हम सभी भाई - बहन मांसाहारी । बात थोड़ी अजीब तो लगती है परन्तु याद नहीं आ रहा ऐसा क्यों कर संभव हुआ। शायद चाचाजी लोगों के कारण हम सभी ने मांस खानी सीख ली होगी। पिताजी कोर्ट से आते समय मांस खरीदकर लाया करते थे। साईकिल में लटकाकर घर आने पर हममें से कोई निकालकर ले आया करता था। पिताजी छूते नहीं थे। मां खाती नही थी परन्तु बनाती इतना टेस्टी थी बता नहीं सकती। मांस ही क्यूं हर व्यजन ,मिठाई हो कोई अचार हो या फिर सब्जी उनके हाथों में जादू था।
कहीं भी गांव में कोई भोज होनी होती सब्जी बनाने के लिए मां का बुलावा आ जाता था।उनके बाद वैसा स्वादिष्ट खाना कभी नसीब नहीं हुआ।
अब ऐसा करता हुआ कि मैं और मेरी छोटी बहन मांसाहारी से शाकाहारी बन गए। मुहल्ले से एक निमंत्रण आया पड़ोस में किसी की कोई मनोकामना पूरी हुई थी ,इस खुशी में बलि देनी थी। समझ नहीं आती खुशी मनाने का यह कौन सा तरीका है । खुशी मिले किसी को मारकर खा जाओ। चलिए होगा कोई तरीका ,इसी तरीके ने हमें शाकाहारी बनाया।
घर में ढेरों काम रहते थे सारे काम मां केजिम्मे हुआ करता। आज समय बहुत बदल गया है।अभी पुरुष भी महिलाओं के काम में हाथ बंटाने दिया करते हैं ,पहले ऐसा नहीं था। मां ने हम-दोनों बहनों से कहा मुझे तो काम है ,और नहीं जाऊंगी तो लोग बुरा मान जाएंगे और ।तुम दोनों बहनों चली जाओ।
बच्चें का मन हम-दोनों बहन ने कपड़े पहन खुशी - खुशी वहां मैदान में चले जहां पहले से ही पूरा मुहल्ला जमा था। बड़ी उत्सुकता से हम दोनों देख रहे थे। पहले ऐसा कोई आयोजन हमने देखा नहीं था। मैं दस साल की थी और मेरी छोटी बहन सात साल की।
अब आगे का सीन आया है एक बकरी का बच्चा लाया जाता है।फिर थोड़ी देर जाने क्या सब चलता है हमें समझ कुछ नहीं आती लेकिन देखने में अच्छा लग रहा था। बकरी के बच्चे को माथे पर टीका लगाया जाता है, उसके गले में फूलों की माला डाली जाती है। यह सब बहुत अच्छा लग रहा था। फिर हरी - हरी घास उसे खाने को दी जाती । आगे आने वाले समय से बेखबर वह खाने में व्यस्त हो जाता है। हे भगवान यह क्या ? एकाएक एक तेज हथियार उसके गले पर पड़ी । उसका सिर धड़ से अलग हो गया । बड़ा विभत्स दृश्य था। गला अलग छटपटा रहा था, धड़ अलग कूद रहा था। खून की तो मानो नदियां बह चली थी।
हम दोनों बहनें एक दूसरे को जकड़कर पकड़ा हुआ था, जैसे अब हमारी बारी हो। गले से आवाज नहीं आ रही थी । यह तो अच्छा थाहमलोग किनारे बैठे थे। वहां से भागने में सहुलियत हुई। रोते बिलखते हम घर पहुंचे। घर आकर मां को सब कुछ बताया। उन्होंने बहुत तरह से हमें समझाया।
जिनके घर बलि हुई थी ,वो मास लेकर आई । मां ने बनाई भी लेकिन हम दोनों बहनों ने खाने से इन्कार कर दिया।
बात पिताजी तक पहुंची । पिताजी के गुस्से आजतक याद है मुझे। उन्होंने मां को बहुत डांट लगाती थी। कहा था इतनी अक्ल नहीं है आपको जानती है आप बच्चों का मन कितना कोमल होता है। कितने डर ग्रे होगें । हमेशा के लिए आपने अपनी बेबकूफी से इन्हें कमजोर बना । बच्चों को बचपन में अपनी मां से बहुत लगाव होता है । मुझे याद है मां को जो डांट पर रही थी कितना बुरा लग रहा था।
पिताजी की बातों में कितना दम था अब समझ आ रही है। आज भी अगर दो-तीन चार बूंद खून की दिख जाए , मैं घबरा जाता करती हूं।

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