मैं छत पर थी ,छोटी बहन दौड़ते हुए पास आई । दीदी चलिए मां बहुत गुस्से में है, आपको बुला रही है । मैंने जानना चाहा हुआ क्या ? मुझे नहीं पता कोई आया था मां को कार्ड दे गया है ,तभी से गुस्सा कर रही है।
मेरी छोटी बहन को कुछ समझ नहीं लगा लेकिन मैं समझ गई माजरा है क्या ? मुझे पहले से पता था एक न एक दिन मुझे इसका सामना करना पड़ेगा। मैं डरते हुए नीचे आई । मां के सामने आकर खड़ी हुई ही,थी कि वह बिफर पड़ी मुझपर। क्यों री भीतरगुन्नी यह क्या है ? यह भीतरगुन्नी मेरा उपनाम था। मैं चुप रहती बोलती नहीं लोगों ने मौनी बाबा, भीतरगुन्नी जैसे नाम दे रखें थे।
मेरी छोटी बहन को कुछ समझ नहीं लगा लेकिन मैं समझ गई माजरा है क्या ? मुझे पहले से पता था एक न एक दिन मुझे इसका सामना करना पड़ेगा। मैं डरते हुए नीचे आई । मां के सामने आकर खड़ी हुई ही,थी कि वह बिफर पड़ी मुझपर। क्यों री भीतरगुन्नी यह क्या है ? यह भीतरगुन्नी मेरा उपनाम था। मैं चुप रहती बोलती नहीं लोगों ने मौनी बाबा, भीतरगुन्नी जैसे नाम दे रखें थे।
मां ने कार्ड मेरी तरफ बढ़ाया। मेरा तो कांटों तो खून नहीं। कांपते हाथों से कार्ड पकड़ा।
मार्च, अप्रिल, मई ,जून और जुलाई पांच महीने हुए शादी के और यह छठी का कार्ड । बच्चें क्या पांच महीने में आते हैं। कुछ बोलती क्यों नहीं मुंह में दही जमा रखी है। तुमको पता होगा बताया क्यों नहीं ?
मैं अपनी चुप रहने की आदत पर आज खुश थी। मेरी आदत थी लोगों के साथ का ज़बाब नहीं देना । मेरी इसी आदत से तंग आकर भीतरगुननी और मौनी बाबा की उपाधि मिली थी मुझे।
चुप रहने का मतलब यह नहीं होता सामने वाला सही है। मुझे भी मां पर गुस्सा आ रहा था, क्या बताती इन्हें और मान लो बता भी देती तो क्या मेरा क्लास नहीं लेतीं ?
चुप रहने का मतलब यह नहीं होता सामने वाला सही है। मुझे भी मां पर गुस्सा आ रहा था, क्या बताती इन्हें और मान लो बता भी देती तो क्या मेरा क्लास नहीं लेतीं ?
मां का बोलना जारी था ऐसे --ऐसे से दोस्ती कर रखी है। यह तो भगवान की कृपा से हमारी इज्जत बच गई।
मेरे मन में आ रहा था कहूं आपके घर में तो शादीशुदा भी आपके डर से बच्चें न करें। समझ नहीं आ रहा था इनको क्या परेशानी थी ?
मेरे मन में आ रहा था कहूं आपके घर में तो शादीशुदा भी आपके डर से बच्चें न करें। समझ नहीं आ रहा था इनको क्या परेशानी थी ?
जब उसके मां-बाप ने इजाजत दे दी। जिसका बच्चा था उसीकी पत्नी बनी फिर ?
अपनी बातों को जारी रखते हुए मुझे सुनाए जा रही थी। मुझे तो उसी समय भान हो गया था , कोई भला मंगला लड़का के खातिर बेटी को दूसरी जाति में ब्याह देगा। बड़ी समझा रही थी मुझे मंगला लड़का नहीं मिल रहा था इसलिए दूसरे जाति में लड़की को ब्याह दिया। मुझे उल्लू समझ रखा है।
मैं वहां से भाग भी नहीं सकती थी, यह तो उनकी मानहानि हो जाती, समझ नहीं पा रही थी, यह क्या इतना बड़ा गुनाह है ? दूसरी जाति में शादी करने का दंश क्या सारी उम्र इन दोनों के साथ इनके औलाद को भी झेलनी होगी ?
मैं अपनी समझदारी के लिए खुद को शाबाशी देते हुए कहा रही थी मुझे तो पहले ही लग गया था दाल में कुछ काला है नहीं तो इम्तिहान दिलवाने वह क्यों जाता ?
मैं अपनी समझदारी के लिए खुद को शाबाशी देते हुए कहा रही थी मुझे तो पहले ही लग गया था दाल में कुछ काला है नहीं तो इम्तिहान दिलवाने वह क्यों जाता ?
सहेली ने मुझे कुछ बताया तो नहीं था लेकिन इम्बिंतिहान दिलाने मेरे होनेवाले जीजा का मुझे शक हो गया था। मुझे लगा था दोनों में कुछ तो है।
दरअसल मैं और मेरी सहेली मैट्रिक वोर्ड दे रहे थे । सेन्टर मेरे गांव के करीब दूसरे गांव में पड़ा था।
मेरे पिताजी वकील थे, एक मुक्किवल जो उस गांव का था उससे एक कमरे के साथ खाना बनाने के,बिछावन की व्यवस्था करवा दी थी।
दरअसल मैं और मेरी सहेली मैट्रिक वोर्ड दे रहे थे । सेन्टर मेरे गांव के करीब दूसरे गांव में पड़ा था।
मेरे पिताजी वकील थे, एक मुक्किवल जो उस गांव का था उससे एक कमरे के साथ खाना बनाने के,बिछावन की व्यवस्था करवा दी थी।
वहां हम चार थे हम दोनों परीक्षार्थि मेरी माताजी और मेरे होनेवाले जीजाजी। मां को यही से कुछ गड़बड़ लग रहा था।
मां फिर भी थोड़ा कम सुना पा रही थी, क्योंकि मेरी भी एक महीने जून में शादी हो गई थी। मान्यता है शादी के बाद बेटियां पराई होती है । सोचती हूं अगर मेरी शादी नहीं हुई होती, तो मेरी सहेली के इस कुकृत्य के लिए मुझे ही फांसी चढ़ा देती ।
फिर उनका आदेश हुआ शादी में गई थी अब छठी में जाने की कोई जरूरत नहीं है। मैं चुपचाप उनका आदेश माथे पर वाली मुद्रा में वहां से अंदर चली गई। सच कहूं रातभर सो नहीं पाई, नहीं आने का क्या कारण बताऊंगी अपनी सहेली को ?
मां फिर भी थोड़ा कम सुना पा रही थी, क्योंकि मेरी भी एक महीने जून में शादी हो गई थी। मान्यता है शादी के बाद बेटियां पराई होती है । सोचती हूं अगर मेरी शादी नहीं हुई होती, तो मेरी सहेली के इस कुकृत्य के लिए मुझे ही फांसी चढ़ा देती ।
फिर उनका आदेश हुआ शादी में गई थी अब छठी में जाने की कोई जरूरत नहीं है। मैं चुपचाप उनका आदेश माथे पर वाली मुद्रा में वहां से अंदर चली गई। सच कहूं रातभर सो नहीं पाई, नहीं आने का क्या कारण बताऊंगी अपनी सहेली को ?
मैंने जब भी रखा अपने से ऊपर अपने दोस्तों को रखा। मेरी जिन्दगी में जिसे भी दोस्त मानती हूं ईगो त्यागकर मानती। इसी उधेड़ बुन में रात बीत गई ।
सबेरे अनमने भाव से उठी, नीचे आई तो मां ने बुलाया ,कहा आज ही छठी है न दोनों बहनों बाजार जाकर बच्चे के लिए कपड़े और सुनार के यहां से नजरिया ले आना। मुझे उनकी बातों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था, मेरे आंखों में आंसू आ गए।
ऐसा होता है मां का ह्रदय , लगा शायद वह भी रात भर जगती रही,,सोचती रही या फिर नाती को देखने की इच्छा के आगे उनकी रूठ नीति, जाति प्रथा हार गई ।मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मेरा मन खुशी से नाच उठा।
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