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पतिदेव का सपना

सपना देखना बुरा नहीं परन्तु उसे सुनाना या सुनना महज समय की बर्बादी लगती थी मुझे ।ऐसा करता हुआ सपना सुनकर जो पुरानी यादें ताजी हो गई । जी हां सुबह सोकर उठते ही पतिदेव ने कहा जानतीं है कल रात मैंने एक अजीब सपना देखा । मैंने बातें अनसुनी कर दी। मुझे न तो सपने देखने में कोई दिलचस्पी रहती न सुनने में। पतिदेव लगता सुनाने के लिए बेचैन थे उन्होंने सोचा कुछ डरावना कहूं तो बात बन जाएगी, अरे बहुत भयानक सपना था। मैं फिर भी कोई जिज्ञासा नहीं दिखाई और अपने काम में लगी रही। फिर मेरा ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने पासा फेंकेंगे, मैं सपने में आपको देखा ।अपना नाम सुनते ही मैं उधर मुड़ी मेरा ? क्या देखा ?अब मुझे जानने की ईक्छा हुई आखिर देखा क्या इन्होंने । अब मुझे सुनने के मूड में देखा तो उनकी बांछे खिल गई।इन्सान की भी अजीब फिदरत है जानते हुए कि सपनों की जिन्दगी नींद खुलने तक ही है देखेगा जरूर और हद तो तब होती जब सुनाने के लिए बेचैन हो। चलिए पतिदेव को सपने की वारदात सुनने के लिए मैं श्रोता के रूप में मिल गई।
उन्होंने सुनाना शुरू किया मैं कहीं मेरे में जा रहा था साथ में आप भी थी। आप ? जी हां मेरे पतिदेव मुझे आप कहकर ही संबोधित करते है। मेरा का नाम सुनते हैं खुशी से उछल पड़ी । जी हां मेरे मुझे बहुत पसन्द है , खासकर बड़े - बड़े झूलें । मेरी बदनसीबी यह है पतिदेव के साथ ही सभी डरने वाले मिलते हैं और हरबार मुझे अकेले ही झूलों पर चढ़ी पड़ती है। झूलों मैंने इसलिए लिखा मैं अगर मेरे में जाती तो हरेक झूलों पर बैठे बगैर नहीं आती।मेरे में एक और पसंदीदा चीज है मेरा गोलगप्पा।
पतिदेव ने शुरू किया बहुत खुश होने कि बात नहीं है मेरे में बहुत भीड़ थी, तो करता मैं को गई ? मैंने सवाल किया । नहीं मेले में जो भी लोग आए थे उनमें से कुछ आदमी-औरत के नाम की  लाट्री निकलने वाली थी। मेरा अगला प्रश्न था मेरी निकली होगी ? मैं जो बचपन में गूंगी कहीं जाती थी ,चुप रहा करती थी न जाने कैसे ,कब इतना बोलना सीख गई कि अब ज्यादा बोलने कि शिकायत लोगों को रहने लगी। कुछ लोगों ने तो यहां तक कह दिया करता बच्चों जैसे दिनभर बोलती रहती हूं।
पतिदेव का ज़बाब था हां जी आपके नाम की लाटरी निकली है । बलि देने के लिए चुने जाने वालों में आपका भी नाम पुकारा गया है। मैं बहुत घबरा गया जो भी मिलता सबसे आपको बचा लेने को कहता । इतने में पुलिस दिखाई दी ,मैं दौड़कर उसके पास गया अपनी परेशानी उसे बताई । पुलिस के ज़बाब से मैं हक्का बक्का रह गया । पुलिस ने कहा मैं कुछ नहीं कर सकता यहां ऐसा ही नियम है। अब मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था करता करूं? चुपचाप माथा पर हाथ रखकर बैठ गया । आपकी तैयारी शुरू हुई श्रेणियां वस्त्र पहनाए गए गले में मोटी सी फूलों की माला गले में डाली गई। माथे पर सिंदूर का टीका लगाया गया , लोग बारी - बारी से आकर आपके पैर छूने लगें ? अब तक मैं चुपचाप सुन रही थी चुप्पी तोड़ते हुए भारी वातावरण को हल्का बनाने की कोशीय करते हुए उनसे सवाल दागां ए तो बताए आपने मेरे पैर छूए या नहीं ? हां छूए छूना ही था अंतिम विदाई जो थी आपकी ।
मैंने पूछा फिर करता हुआ ? एक चमचमाता हथियार लेकर एक काला कलूटा आदमी आपके पास आया । उसने हथियार उठाकर जैसे ही आपके गले पर वार करने वाला था ,मेरी नींद खुल गई। मेरे खुशी के या गम के आंसू निकल आए ? समझ नहीं पाया यह बुरे सपने के टूटने कि खुशी थी ,या फिर क्यों टूट गया इसके गम के आंसू थे। मैं थोड़ी देर होकर कोशीश करता रहा काश इकबाल फिर नींद आ जाए और मेरा अधूरा सपना पूरा हो जाए

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