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क्षणिकाएं-- 27

तुम्हारे घर तक आने का इरादा कर लिया मैंने ।
तुम्हारे रुसवाईयों के डर से डरना छोड़ दी मैंने।

जो डरते हैं वो डरते होगें तुम्हारी लड़ने की आदत से।
मैं तो वो हूं जो सदा तेरी खामोशी से डरता हूं ।

उनके पास लश्कर बहुत है, तुम अकेले हो मगर।
अपनी रुसवाईयों के डर से डरना छोड़कर देखो।


तुम्हारे इश्क में अब इससे ज्यादा और क्या होगा।
जमीर मर गया हो तो, जिस्म जिंदा रहकर क्या होगा।

माना कि अब मेरे शहर में बारिसे‌ बहुत होगी ।
फसल जब जड़ गए सारे, तो इन वारिसों का क्या होगा।

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