Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

क्षणिकाए- 29

रूक जाओ आंसूओं मैं मुस्कराने वाली हूं ।
अपने ग़म को तेरे दामन में छुपाने वाली हूं।

जिन माटी के पुतले में अब भी ईमान बाकी है।
मानवता से बड़ा न था कोई मजहब जिनका ।

समझते हो उस शख्स में अब भी जान बाकी है।
जिन्दा नहीं है लिख सकता है तू इतिहास पन्नों में ।

लिखना हो अगर तो मेरे कब्र पर बस इतना लिख देना।
जाने से पहले  इसने सबका हिसाब चुकता कर दिया ।

जब तक जीया सब पर अटल विश्वास था किया ।
जिसको था कुछ दिया उसका सब माफ कर गया।

सबको पाने की कोशीश में बिखड़ता चला गया ।
सब भीड़ में खोते चले गए वह अकेला ही गया ।।

Post a Comment

0 Comments