रूक जाओ आंसूओं मैं मुस्कराने वाली हूं ।
अपने ग़म को तेरे दामन में छुपाने वाली हूं।
जिन माटी के पुतले में अब भी ईमान बाकी है।
मानवता से बड़ा न था कोई मजहब जिनका ।
समझते हो उस शख्स में अब भी जान बाकी है।
जिन्दा नहीं है लिख सकता है तू इतिहास पन्नों में ।
लिखना हो अगर तो मेरे कब्र पर बस इतना लिख देना।
जाने से पहले इसने सबका हिसाब चुकता कर दिया ।
जब तक जीया सब पर अटल विश्वास था किया ।
जिसको था कुछ दिया उसका सब माफ कर गया।
सबको पाने की कोशीश में बिखड़ता चला गया ।
सब भीड़ में खोते चले गए वह अकेला ही गया ।।
अपने ग़म को तेरे दामन में छुपाने वाली हूं।
जिन माटी के पुतले में अब भी ईमान बाकी है।
मानवता से बड़ा न था कोई मजहब जिनका ।
समझते हो उस शख्स में अब भी जान बाकी है।
जिन्दा नहीं है लिख सकता है तू इतिहास पन्नों में ।
लिखना हो अगर तो मेरे कब्र पर बस इतना लिख देना।
जाने से पहले इसने सबका हिसाब चुकता कर दिया ।
जब तक जीया सब पर अटल विश्वास था किया ।
जिसको था कुछ दिया उसका सब माफ कर गया।
सबको पाने की कोशीश में बिखड़ता चला गया ।
सब भीड़ में खोते चले गए वह अकेला ही गया ।।
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