पिताजी वकालत करते थे , मैं और मेरा पूरा परिवार शहर में रहते थे। गांव से आना - जाना लगा रहता था। पर्व शादी हो या किसी अपनों की मौत हो बच्चों को करता हमें तो गांव जाने मिलेंगे न यही खुशी होती थी। सबसे अधिक खुशी होती थी गर्मी की छुट्टी की पूरे एक महीने कागज पेंन्सील से दूर। बड़ी बेसब्री से छुट्टी के इंतजार रहता था।
गर्मी छुट्टी और आमों का बहार । बहुत बड़े बगान थे आम के ।दादाजी के तीन बेटे थे, मेरे पिताजी सबसे छोटे और छोटे होने के साथ बिगड़ैल भी। आम का बाग इतने बड़े एक बार में पूरे बगान का चक्कर नहीं लगाने सकते । हर प्रकार के आम थे। बीजू आम के ही तीस पैंतीस पेड़ होंगे,सीपियां ,सुकुर ,लंगड़ा, सिंदुरिया मोटवानी,बथुआ और न जाने कौन -कौन?
हमसे बड़ी लड़कियों को आम के बगीचे में जाने की मनाही थी । मैं और मेरे उमर की लड़कियों पर कोई पावन्दी नहीं थी। चाचाजी की लड़कियों को मिलाकर हम सात थे। हमें मनाही थी तो सिर्फ पोखरी ( तालाब) में नहाने की। मानव का स्वभाव है जो मना किया जाए उसे करने की अपार इच्छा होती है। पोखरी की बातें कभी बाद में करूंगी आज बात करते हैं आम के बगीचे में खाना बनाने की । पूरी जिन्दगी खाना बनाती रही हूं लेकिन उतना स्वादिष्ट कभी नहीं लगा। कितनी मुश्किल से अनुमति मिलती थी आम के बगीचे में खाना बनाने की ।दस बातें सुननी पड़ती , आग से डराया जाता शादी न जाने हर जगह बीच में क्यों आ जाता🤔 लड़की हो कुछ हुआ तो शादी भी नहीं होगी। समझ नहीं आता शादी क्या इतना जरूरी है कि उसके लिए अपने सारे अरमान छोड़ने पड़ते हैं ।
गर्मी छुट्टी और आमों का बहार । बहुत बड़े बगान थे आम के ।दादाजी के तीन बेटे थे, मेरे पिताजी सबसे छोटे और छोटे होने के साथ बिगड़ैल भी। आम का बाग इतने बड़े एक बार में पूरे बगान का चक्कर नहीं लगाने सकते । हर प्रकार के आम थे। बीजू आम के ही तीस पैंतीस पेड़ होंगे,सीपियां ,सुकुर ,लंगड़ा, सिंदुरिया मोटवानी,बथुआ और न जाने कौन -कौन?
हमसे बड़ी लड़कियों को आम के बगीचे में जाने की मनाही थी । मैं और मेरे उमर की लड़कियों पर कोई पावन्दी नहीं थी। चाचाजी की लड़कियों को मिलाकर हम सात थे। हमें मनाही थी तो सिर्फ पोखरी ( तालाब) में नहाने की। मानव का स्वभाव है जो मना किया जाए उसे करने की अपार इच्छा होती है। पोखरी की बातें कभी बाद में करूंगी आज बात करते हैं आम के बगीचे में खाना बनाने की । पूरी जिन्दगी खाना बनाती रही हूं लेकिन उतना स्वादिष्ट कभी नहीं लगा। कितनी मुश्किल से अनुमति मिलती थी आम के बगीचे में खाना बनाने की ।दस बातें सुननी पड़ती , आग से डराया जाता शादी न जाने हर जगह बीच में क्यों आ जाता🤔 लड़की हो कुछ हुआ तो शादी भी नहीं होगी। समझ नहीं आता शादी क्या इतना जरूरी है कि उसके लिए अपने सारे अरमान छोड़ने पड़ते हैं ।
बहुत मिन्नतें करने पर दादी की अनुमति मिलती थी। जी हां दादी ही सबकुछ थी। पूरी की पूरी गोवर्मेट । तभी तो सारी बहुएं उन्हें सरकार जी कहती थी। अनुमति मिली साथ में एक काम करने वाली की बच्ची भी। हम सभी खुश हो जाते कल बगीचे में चावल और आम की सब्जी बनाई जाएगी। सारे सामान चावल मसाले बर्तन लेकर हम सभी आम के बगीचे जिसे वहां की भाषा में गाछी कहते हैं, पहुंच जाते। दो चार छोटे बड़े भाई भी साथ रहते। हमारे समय में लड़के भूखे मर भी जाए तो भी चुल्हे नहीं छूते थे। चुल्हा छूने से उनकी तौहीनी जो हो जाती।
बगीचे में पहुंचकर आम के सूखे लकड़ियां जमा करना ,पेड़ से आम तोड़ना लड़कों का काम था। ईंट से चुल्हे बनाई जाती, पत्ते डालकर मुंह से फूंक मार मारकर चुल्हे जलाई जाती। हम सभी बहुत परेशान होते लेकिन जो काम करनेवाली की लड़की को लाख कहने पर भी कुछ नहीं करने देते। हमें इस अभियान का सेहरा अपने सर पर बंधवाने की चाह रहती थी।
खाना बनाने के लिए जो डेकची में पानी रखें होते लगता था वह नहीं खौलने की कसम ले रखी हो। कोई कहता नहीं खौल रहा तो ऐसे ही चावल डाल दो पक जाएगा। कोई अपने को ज्यादा बुद्धिमान साबित करने के लिए कहता नहीं अभी चावल नहीं डालो ,देखती नहीं कैसे घर में पानी खौलने पर चावल डाले जाते हैं। इस बात पर मार-पीट भी हो जाती थी।
बगीचे में पहुंचकर आम के सूखे लकड़ियां जमा करना ,पेड़ से आम तोड़ना लड़कों का काम था। ईंट से चुल्हे बनाई जाती, पत्ते डालकर मुंह से फूंक मार मारकर चुल्हे जलाई जाती। हम सभी बहुत परेशान होते लेकिन जो काम करनेवाली की लड़की को लाख कहने पर भी कुछ नहीं करने देते। हमें इस अभियान का सेहरा अपने सर पर बंधवाने की चाह रहती थी।
खाना बनाने के लिए जो डेकची में पानी रखें होते लगता था वह नहीं खौलने की कसम ले रखी हो। कोई कहता नहीं खौल रहा तो ऐसे ही चावल डाल दो पक जाएगा। कोई अपने को ज्यादा बुद्धिमान साबित करने के लिए कहता नहीं अभी चावल नहीं डालो ,देखती नहीं कैसे घर में पानी खौलने पर चावल डाले जाते हैं। इस बात पर मार-पीट भी हो जाती थी।
पानी में चावल डालते शुरू हो जाता था , चावल चेक करने का सिलसिला ,हर सेंकेन्ड चावल देखी जाती थी हुआ या नहीं ?
सबसे एक्सपर्ट दिखाने का मौका तो आम की सब्जी बनाने में दिखाया जाता।
सबसे एक्सपर्ट दिखाने का मौका तो आम की सब्जी बनाने में दिखाया जाता।
अब तक लड़के खेलने में मसगूल हो जाते थे, बुलाओ आकर आम छीलो, कांटों कहते रहो कोई सुनता था ? उन लोगों ने आम तोड़कर दे दी, अब बनाओ और बैठ जाएंगे खाने । फिर हमें ही आम छीलकर काटनी पड़ती थी। घर की महिलाओं का नकल करते हुए तेल डालों ,गर्म हो गया,आम डालो भूजो। हां अब मसाले, इस बात पर भी खूब बहस हुआ करती थी कोई कहता थोड़ी हल्दी और कोई कहता आम की सब्जी तीखी अच्छी लगती और मिर्च डालों।इस तरह हम सभी के सहयोग से भोजन बनकर तैयार हो जाता ,तब तक तो हमारे पेट को चूहे खेत का मैदान बना चुके होते।
खाना तैयार हुआ जानते सारे लड़के खेलना छोड़ केले के पत्ते लेकर दौड़कर आ जाते । अब दस्तरखान पर सब खाने के लिए हाजिर । सबके पत्तल पर चावल और आम की सब्जी होती ,तीखी मिर्च से भरी सब्जी । बड़े मजे से चटकारे ले ले कर भोजन करते। भोजन काफी स्वादिष्ट लगता शायद उसे बनाने में अपनी मेहनत जो होती थी।
आज भी उस भोजन का स्वाद जीभ पर विराजमान हैं। आज तक किसी फाइव स्टार होटल में भी खाने पर वह संतुष्टी नहीं हुई जो आम के बगीचे में बने चावल और आम की सब्जी में।चलिए चलती हूं मुझे आज आम की सब्जी बनाकर खानी है भले उसमें पहले वाली बात न हो, उन दिनों की याद ताजा करनी है।
खाना तैयार हुआ जानते सारे लड़के खेलना छोड़ केले के पत्ते लेकर दौड़कर आ जाते । अब दस्तरखान पर सब खाने के लिए हाजिर । सबके पत्तल पर चावल और आम की सब्जी होती ,तीखी मिर्च से भरी सब्जी । बड़े मजे से चटकारे ले ले कर भोजन करते। भोजन काफी स्वादिष्ट लगता शायद उसे बनाने में अपनी मेहनत जो होती थी।
आज भी उस भोजन का स्वाद जीभ पर विराजमान हैं। आज तक किसी फाइव स्टार होटल में भी खाने पर वह संतुष्टी नहीं हुई जो आम के बगीचे में बने चावल और आम की सब्जी में।चलिए चलती हूं मुझे आज आम की सब्जी बनाकर खानी है भले उसमें पहले वाली बात न हो, उन दिनों की याद ताजा करनी है।
बस एक बार आम बगीचे में चावल और आम की सब्जी बनाने खाने को मिल जाए।
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