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क्षणिकाए- ३०

अंधेरी कब्र में जब हम अकेले होगें ।
तुम्हारे यादों से ही वहां रोशनी होगी ।

काश इफ्तार में आप भी हमारे शामिल होते।
आबाद रहने की दुआ आपने जो मांगी होती।

आबाद रहो तुम तेरे लव पर गर यह दुआ होती।
रमजान के महीने के बरकत से
खुदा से मेरी सेहत आता फरमाने को कहा होता ।
तो आज न मैं इस अंधेरे कब्र में यूं पड़ा होता ।

यह किसने कहा खुदा पर सिर्फ तेरा हक है ।
तू पूछ कर देखते गर मेरे प्यारे नवी से।
उसने हमको अपनो में ही बताया होता।

घर न बुलाया है तुमने तो कोई बात नहीं।
मेरे घर तारीफ न लाएं तो कोई बात नहीं।
गले मिलने की जहमत भी न उठाई तुमने।

रमजान के महीने के बरकत से ।
मैं भी जिंदा रहता दोस्ती भी सलामत रहती अपनी।
हमारी दोस्ती पर कभी कोई आंच तो न आया होता।

तुम खुश रहो आबाद रहो ऐ दोस्त ।
हम तो कब्र से भी यही दुआ करते हैं।

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