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मॉ की यादें--१

मां तेरी चरणों की धूल अपने सर पर लगाने आई हूं।
तेरी चरणों में मां कुछ श्रद्धा के फूल चढ़ाने आई हूं ।

मां की याद आते चेहरे पर खुशी छा जाती है। मां सबकी प्यारी होती है। कहते हैं भगवान हर जगह नहीं रह सकते इसलिए उन्होंने मां को बनाया। बहुत सारी बाते मां के बारे में कहीं गई है। मुझे अपनी मां की कुछ बातें आपसे शेयर करनी है। हमलोग पांच बहन और एक भाई थे। पांच बहन , समंदर नहीं पाती कैसे सम्भाली उन्होंने इतनी बड़ी जबाबदेही। बचपन में लगता था पिताजी अच्छे हैं ,कुछ नहीं कहते। मां तो पूरी की पूरी खलनायिका है। यहां नहीं जाओ, यह मत करों,इतने जोड़ से कर्मों हंसती धीरे हंसो। गुस्सा लगता सोचती ए तो हिटलर है।
समय के साथ आपके विचार भी बदलते जाते हैं, अब सोचती तो लगता मां इतनी कड़ी नहीं होती तो , तो एक दो बुरी घटना जरूर चटनी थी।
सोचती हूं क्या शेयर करूं ? मां के साथ बीते हर पल अमूल्य है। बातें शुरू करते बचपन की उन यादों से जब कृष्णाष्टमी का दिन आया था। वह पिताजी के शब्दों में पुजेरीन थी। मेरे पिताजी नास्तिक नहीं तो आस्तिक भी नहीं थे। फूल चढ़ाना,अगरबत्ती दिखाना घंटों बैठकर मंत्र पढ़ना उन्हें ठकोसला लगता था। उपवास से तो चिढ़ जाते थे, क्या आपके नहीं खाने से भगवान को खुशी होती है। अगर ऐसा है तो खाना बंद कर दें वो हमेशा खुश रहेगें । मां जब भी उपवास में रहती कहा करते आज तो भगवान खुश होकर आ ही जाएंगे ।
मां को कृष्णाष्टमी सूखनी थी ,हम तीनों बहन भी सूखने की जिद्द पकड़ ली ।मां ने बहुत समझाया तुमलोग बच्चें हो बारह बजे तक सहनी होती ,भूख लग जाएगी। मां की इक अच्छी आदत थी उन्हें जो कहना रहता बातों को वैसे ही मोड़ देती थी। अभी उन्हें हम सभी को कृष्णाष्टमी से रोकनी थी ,तो कहा भूखी रह तो रोगी,लेकिन बारह बजे तक रह नहीं पाई तब पाप लगेगा। पता न क्यों हमें रोकना चाहा रही थी,कहीं ऐसा तो नहीं पिताजी के डर से जब पता चलेगा अब अपने साथ बच्चियों को भी कृष्ण भारती में भूखा रखा रहीं हैं तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर होगा।
इधर मैं बताऊं भूखे रहने पर साबूदाना बनता था जो मुझे बहुत प्रिय है, मैं हर हाल में साबूदाना भर पेट खाना चाहती थी। जो भूखे रहते थे भरपेट साबूदाना खाते जो नहीं रहते उन्हें बस थोड़ी सी मिलती थी।
हमारी जीत हुई मां को इजाजत देनी पड़ी कृष्णाष्टमी करने की। हम सभी बच्चों का ख्याल करते हुए सड़गही ( सबेरा होने से पहले खाया जाने वाला) की व्यवस्था की गई। पांच बचे सुलह उठकर हमलोगो ने चूड़ा-दही ठकोसा । सुलह होने पर लगा अरे यह तो बड़ा आसान है ,भूख भी नहीं लगी है, इतनी समझ कहा थी कि अभी --अभी तो चूड़ा- दही खाई है भूख लगेगी कैसे?
दिन के बारह बजने पर पेट में चूहा कूदने लगे। प्रयास से गला सूखने लगा। मन लगाने के लिए पड़ोसी के यहां झूले झूलने गई। वहां मेरी सहेली और उसकी बहन ने भी अस्टमीकर रखी थी। यह जानकर दिल को बड़ा सुकून मिला एक सब भी मेरी तरह भूख प्यास से तड़प रही है। मन बहलाने के लिए हाथों में मेहंदी लगाई। परन्तु सब बेकार पेट से बहुत डरावनी आवाजें आ रही थी। वहां से घर वापस आ गए।
घर आते ही मां ने हमारे चेहरे देख भाप गई किस तरह भूख से मरे जा रहे हैं हम। मां ने कहा तुम लोग थोड़ा सा का लो , थोड़ा सा खाने में कोई हर्ज नहीं है। हम लोगों के दिमाग में पाप लगने का डर था ,इनकार कर दिया। अब मां ने पैंतरा बदली अरे वो तो बयानों के लिए कहा था ,ब्च्चेंतो खुद ही भगवान होते हैं । बच्चों को पाप नहीं लगनी। मेरी छोटी बहन ने कहा दीदी,कली दोनों बहनों भी भूखी है । उनलोगो को पता चल जाएगा। अब देखने वाली बात यह थी कि हमें पाप का या भगवान का चिन्ता नहीं ।हमें चिंता हुई तो तथाकथित समाज की सब क्या कहेंगे और ? तमाम उम्र यही तो सोचते हैं हम लोग क्या कहेंगे? अपनी जिन्दगी भी तो नहीं थी पाते हम लोग क्या कहेंगे और,जबकि समाज के पास कुछ कहने की भी फुर्सत नहीं है ।
अब मां ने कहा तुम कहोगी क्यों कि कुछ खाई है ? किसी को क्यों बतानी ? आज के सन्दर्भ में देखो तो लगता लोग क्या कहेंगे ? इस डर से लोगों ने अंदर इतनी बातों को छूपा रखी है जो अंदर ही अंदर तनाव में ले जा रहे हैं। हमारा समाज बीमार हो रहा है, लोग डिप्रेशन में जा रहे हैं।
मां की बात मान ली या यह कहूं पेट की भूख ने मजबूर कर दिया हम लोगों ने साबूदाना का
हर पेट आनन्द लिया, नींबू की मीठी शरबत पी और फिर सबके सामने बारह बजे रात तक भूखी होने का नाटक किया। बारह बजे रात में पारण करने का नाटक । आज सोचती हूं दीदी और कली की भी तो एक मां थी , शायद उसकी मां ने भी उसे खिला दिया हो और वह भी हम लोगों के सामने नाटक कर रही हो।
मां ने जो किया बच्चों के प्यार में किया , हमने जो किया भूख की मार में किया ? नाटक करना सीख लिया जो समय पर काम दें । ज़िन्दगी के रंगमंच पर नाटक न ही क्यों नाटक और नाटक करने वालों को समझना जरूरी है
धन्यवाद मॉ चरण स्पर्श।

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