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क्षणिकाए--८

गुजार ही ली दिन मैंने,अब रातें संवार दो।
मेरे खुदा मेरे आंखों में, सपने तो डाल दो ।।

इन्सान को छोड़ो, फरिश्ता ही भेज दो ।😢
इक कदम बढ़ाई ही थी, फ़रिश्ते आ गए ।।

मेरे बढ़ते कदमों में जंजीर डाल गए ।
फ़रिश्ते ने कहा, रूको यह राह गलत।।

इन्सान न समझा सके, फरिश्तो ने वो कहां ।
जल्लादों की नगरी है ,जरा संभल के जाइए।।

इनके भोले-भाले चेहरों पर यूं न जाईए ।
चेहरों पर जो नकाब है, वो तो उठाईए ।।

नकाब उठाई तो सब पराए से लगें ।
नकाब थी तो सब, अपने थे बने हुए।।

मैंने कहा ऐ खुदा आप फ़रिश्ते को बुला ले।
थोड़ी देर जो ठहरा तो यह भी बदल जाएगा।
फिर फरिश्ता कहलाने लायक नहीं रह जाएगा।।

फरिश्ते इस फरेबी दुनिया से आप तशरीफ ले जाए।
हो सके तो फिर कभी, यहां लौट कर नहीं आए ।।

भ्रम बना रहने दें मेरा,गैरों को अपना समझने दें मुझे।
भ्रम टूट गया तो फिर, किस तरह चैन आएगा मुझे ।।

दिन गुजर गई तो फिर, रात भी कट जाएगी।
तू है अपना इस भ्रम में, ज़िन्दगी कट जाएगी।

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