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सहेली मिल गई

पूछना लाजिमी है आपका सहेली मिली या नहीं ?
सोचती हूं ज़बाब क्या दूं ? हां नहीं कहूं तो यह झूठ होगा। हां कहने की हिम्मत नहीं होती। सोचती हूं जो मिली वह मेरी सहेली थी क्या ? वह कक्षा सात में बिछड़ी थी,जब एक छोटी सी बच्ची थी। दोस्ती और दोस्त का मतलब भी नहीं जानती थी। अब जो मिली तो परिपक्व महिला थी, समझदार मां,अच्छी पत्नी।
मुलाकात भी कुछ फिल्मी स्टाइल में हुई अपनी।एक शादी में गई थी मैं। पतिदेव के दोस्त की बेटी की शादी में। बड़े शहरों में शादी में शरीक होने का मतलब होता, आप जाए लिफाफा पकड़ाए। खाना खाने में भिखमंगे के जैसे प्लेट लेकर लाईन में लगें रहे । खाना खाकर घर आ जाएं। जयमाल भी आपकी मर्जी देखों या न देखों। मेजवान ने कार्ड देकर अपनी डियूटी पूरी कर ली है । अब आप सेल्फ सर्विस में है जो मर्जी जितनी मर्जी खाएं।कौन देखता है खाना लेने के चक्कर में कितनी सब्जियां आपके सूट पर गिड़े या आपकी बनारसी साड़ी दही बड़े से कैसे भींग गई।आपको सतर्क रहने थे, आपने क्या समझ रखा था आपके बगल से कोई प्लेट लेकर गुजरेगा ही नहीं।
आप अपने आप को स्मार्ट बना ही नहीं पाए। औरों को देखें कैसे दूसरे पर खाना भले उछाल दें अपने पर कुछ गिरने नहीं देते और आप तो रह गए भूच  के भूच। बैठ गए कालीन पर पत्तल बिछा ली परोसने वाले लाकर आपके पत्ते में डालते जाएं। अरे क्यौं आते हो बूफे में जब कैसे खाते कैसे चलते की समझ ही नहीं ?
खैर भगवान का शुक्र है ऐसा कुछ नहीं हुआ हमारे साथ। आप ऐसा न समझ लें हम स्मार्ट में आते हैं दरअसल अभी हम सभी लाईन में लगे ही थे, हमारी लाईन धीमी गति से हमारे भूख और बढ़ाती हुई आगे बढ़ रही थी,इतने में मेरे पीठ पर किसी का हाथ पड़ा- अरे नगीना तुम ? मैं मुड़कर देखती तो मेरी सहेली खड़ी मुस्कुरा रही है। दिल मेरा खुशी से झूम उठा कम से कम बीस साल बाद मेरी सबसे प्यारी सहेली मेरे सामने खड़ी थी। कितना उदास बीता था मेरा बचपन उसके वगैर। रास्ते से आते - जाते उसकी एक झलक पाने के लिए कितना बेचैन रहती थी। एका एक मैं तंद्रा से जगी मैनें भी सवाल उछाला और उषा तुम यहां ? क्या यहीं रहती हो? मुझे लगा शायद हम दोनों एक ही शहर में रह रहे हो? शहर में गांव वाली बात नहीं होती।किसके घर में क्या पक रहा सबको पता रहता है। शहर में दस साल से एक फ्लैट में रहने वाले भी एक - दूसरे को नहीं पहचानते,और पहचाने भी कैसे ऐ लोग स्मार्ट बन चुके लोग होते हैं। गांव वालों की तरह भूचड़ नहीं कि पूछते रहे कहां( गेला रहला,कहां से  अवईछा) गए थे, कहां से आ रहे हैं। वो तो कुछ लोग होते हैं, हम जैसे जिसे शहर में रहो या गांव में, वहीं हाल सबकी खोज खबर रखने की बुरी लत।
हां मैं भी कहा उलझ गई मुझे तो ज़बाब देनी थी मेरी सहेली मुझे मिली या नहीं। उसने बताया मैं जेठ की बेटी की शादी में आई हूं। मैं मुजफ्फरपुर में ही रहती हूं। पति बिजनेस करते हैं। इन्हें नौकरी तो बहुत मिली लेकिन इन्हें नौकरी करना पसन्द नहीं। मकान हमने खुद बनाएं है कभी आओ तो जरुर आना। तुम फोन कर देना हम आकर ले जाएगें । अरे जानती हो कार लेने में तो पति - पत्नी में महीनो बात बन्द रहीं, मेरी पसन्द डस्टर थी और इन्हें बूलेरो लेनी थी। आखिर डस्टर ही आई घर में। यहां भी बाई रोड ही आई हूं। ऐसे भी तुम छाता चौक  पूछोगी  सबसे नया और बड़ा मकान कौन है तो सब बता देगा।  चालीस पैंतालीस लाख खर्च हुए हैं बनवाने में। इसके बाद वहवअपने बच्चों और पतिदेव को लाने ,मुझसे मिलवाने के अंदर चली गई। तब तक मेरे बच्चें और पतिदेव भी अपना - अपना खाना लेकर आ गए। आने पर मैंने सबको बताया मेरी बचपन की सहेली मिली है, अपने बच्चों को लाने गई है । आए तो पैर छूना । इतने में वह दो गोल मटोल बेहद प्यारे बच्चों और पति के साथ हाजिर हुई। पतिदेव भी ठीक ठाक लगे लेकिन वो मेरी सहेली से कम दीखें। आज भी उसकी सुन्दरता पूरे पंडाल में शायद अकेली हो। मुझे साली जी का दर्जा देते हुए मेरे नए-नए ने बने जीजा जी ने -- मैं खुद साली जी का खाना लेकर आता हूं, कहते हुए काउंटर पर चले गए।वापस आकर मुझे प्लेट पकड़ाई और मेरे पतिदेव से गप्पे मारने लगें ।बच्चें सब खाकर पंडाल में कूद -- फांद कर रहें थे और मुझे अपनी बचपन की सहेली के साथ बिताए क्षण याद आ रहे थे। साथ तो अब भी मैं उसी बचपन की सहेली के थी। परन्तु अब बचपन नहीं था, सहेली बदल गई थी या फिर मैं भी बदल चूंकि थी। कुछ था ऐसा जो ठीक नहीं लग रहा था, शायद घुमाकर उसने मेरी जाति पूछी -- तुम्हारी टाईटल शर्मा, तुम ---? हो ?मैं सोच रही थी क्यों नहीं कहा था मेरी सहेली ने बचपन में मैं कायस्त हूं और तुम ? शायद इसीलिए वह बचपन था,शायद इसीलिए हम सहेली थे, और इसी लिए हमारी दोस्ती थी। ऐसी दोस्ती जिसे बीस साल तक याद रखा जा सके। लगा आज मेरे सामने जो है वह मेरी सहेली नही कोई और है, वह मेरे दिल में बीस साल से थी, वह सहेली ने मिलनी थी न मिली । उस बीस साल पहले नहीं अभी - अभी उसे खोया है मैंने ।
अब आप यह मत मत पूछना मैं उसके घर गई या नहीं ? मैं आपसे पूछती मुझे जाना चाहिए या नहीं ???

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