शायद मैं नाराज हूं, क्यों हूं पता नहीं ?
आकाश पर नाराज़ हूं, या धरती पर ?
नाराज हूं दिन पर या इन काली रातों पर?
सोचती रहती हूं इन्हीं सब बातों पर ।
कोई तो होगी ऐसी बात जो मैं नाराज हूं ?
शायद आकाश को छू नहीं पाती इसलिए।
धरती को तो छूं पाती फिर क्यूं नाराज हूं ?
दिन के आकर खाली हाथ लौट जाने से ।
या फिर रातों के झूठे सपने दिखाने से।
न जाने किस पर और क्यों नाराज़ हूं ?
ऐसा क्यों लगता है, मैं नाराज हूं ?
दिन सपनों को तोड़ जाता शायद इसलिए।
रात झूठ ही सही खाली हाथ तो नही आती।
फिर उसपर भला मैं क्यों नाराज हूं ?
हाकिम पर या गुलाम पर किस पर नाराज़ हूं?
हाकिम की पावन्दियों से परेशान हूं ।
गुलामों की नामर्दगी से नाराज़ हूं ।
इनकी बेबकूफियों पर हैरान हूं ।
हाकिम गुलामों से मुझे क्या लेना ।
फिर इनकी चिन्ता हमें क्यों करना।
देश जाए भाड़ में हमें क्या करना ।
ऐसी सोच रखी हूं फिर भी परेशान हूं।
शायद मैं नाराज हूं, क्यों हूं पता नहीं।
नेता पर या जनता पर नाराज़ हूं ?
नेता के देशद्रोही रवैया देख हैरान हूं।
जनता की लाचारी देख परेशान हूं ।
नेताओं के झूठे वादों पर यकीन करने वाली ।
जनता लगता है मुझे तेरी मूर्खता पर नाराज़ हूं।
खुदा से नाराज़ हूं या फ़रिश्ते से खफा हूं।
दुनिया ऐसी थी,तो भेजा क्यों आपने हमको।
जहां को जन्नत समझ बैठे यह भूल थी मेरी।
इसे जन्नत समझकर हम इससे प्यार कर बैठे।
आओ फरिश्तें आकर सम्भालो ए दुनियां ।
तुम न आओगे तो मिट जाएगी तेरी दुनिया।
हमसे सम्भाले सम्भल न पाती तेरी दुनिया
हम इससे प्यार करते हैं बचा लो मेरी दुनिया।
आकाश पर नाराज़ हूं, या धरती पर ?
नाराज हूं दिन पर या इन काली रातों पर?
सोचती रहती हूं इन्हीं सब बातों पर ।
कोई तो होगी ऐसी बात जो मैं नाराज हूं ?
शायद आकाश को छू नहीं पाती इसलिए।
धरती को तो छूं पाती फिर क्यूं नाराज हूं ?
दिन के आकर खाली हाथ लौट जाने से ।
या फिर रातों के झूठे सपने दिखाने से।
न जाने किस पर और क्यों नाराज़ हूं ?
ऐसा क्यों लगता है, मैं नाराज हूं ?
दिन सपनों को तोड़ जाता शायद इसलिए।
रात झूठ ही सही खाली हाथ तो नही आती।
फिर उसपर भला मैं क्यों नाराज हूं ?
हाकिम पर या गुलाम पर किस पर नाराज़ हूं?
हाकिम की पावन्दियों से परेशान हूं ।
गुलामों की नामर्दगी से नाराज़ हूं ।
इनकी बेबकूफियों पर हैरान हूं ।
हाकिम गुलामों से मुझे क्या लेना ।
फिर इनकी चिन्ता हमें क्यों करना।
देश जाए भाड़ में हमें क्या करना ।
ऐसी सोच रखी हूं फिर भी परेशान हूं।
शायद मैं नाराज हूं, क्यों हूं पता नहीं।
नेता पर या जनता पर नाराज़ हूं ?
नेता के देशद्रोही रवैया देख हैरान हूं।
जनता की लाचारी देख परेशान हूं ।
नेताओं के झूठे वादों पर यकीन करने वाली ।
जनता लगता है मुझे तेरी मूर्खता पर नाराज़ हूं।
खुदा से नाराज़ हूं या फ़रिश्ते से खफा हूं।
दुनिया ऐसी थी,तो भेजा क्यों आपने हमको।
जहां को जन्नत समझ बैठे यह भूल थी मेरी।
इसे जन्नत समझकर हम इससे प्यार कर बैठे।
आओ फरिश्तें आकर सम्भालो ए दुनियां ।
तुम न आओगे तो मिट जाएगी तेरी दुनिया।
हमसे सम्भाले सम्भल न पाती तेरी दुनिया
हम इससे प्यार करते हैं बचा लो मेरी दुनिया।
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