तूने पूछा ही जब मेरा परिचय ?
लोगों की कही सुनाती हूं ।
चलो आज तुम्हें बतलाती हूं।
हिन्दी कहती है मुझे कीमती पत्थर।
उर्दू नायाब पत्थर मुझे बताती है।
कहीं पत्थर समझ पूंजी जाती हूं।
कहीं सरताज समझ सर पर आती।
पर मैं हूं बस इक पत्थर ,
सब पत्थर मुझे समझते हैं ।
पत्थर हो चाहे कोहीनूर ,
सब उस पर ही मरते हैं ।
आपस में लड़ते रहते हैं,
सब पत्थर मुझे समझते हैं ।
हिन्दी कहती यह मुसलीम तो नहीं ।
मुस्लीम शक मुझ पर करते हैं ।
सब पत्थर मुझको कहते हैं।
सोचती हूं गर होती मील का पत्थर ।
कितना सुन्दर होता अपना जीवन ।
भूलों को राह दिखाती मैं
अपने भाग्य पर इठलाती मैं ।
राह पर हर आने जाने वालों को।
बैठी रह राह बताती मैं।
विधना ने भाग्य दिया ऐसा ।
मेरे किस्मत में था, मेरे तिजोरी बदा।
मैं पत्थर हूं प्रिय बस इक पत्थर ।
बस इतना ही परिचय तो है मेरा ।
सब नगीना कहकर मुझे बुलाते हैं।
पत्थर समझ मुझको तिजोरी में भर जाते हैं।
लोगों की कही सुनाती हूं ।
चलो आज तुम्हें बतलाती हूं।
हिन्दी कहती है मुझे कीमती पत्थर।
उर्दू नायाब पत्थर मुझे बताती है।
कहीं पत्थर समझ पूंजी जाती हूं।
कहीं सरताज समझ सर पर आती।
पर मैं हूं बस इक पत्थर ,
सब पत्थर मुझे समझते हैं ।
पत्थर हो चाहे कोहीनूर ,
सब उस पर ही मरते हैं ।
आपस में लड़ते रहते हैं,
सब पत्थर मुझे समझते हैं ।
हिन्दी कहती यह मुसलीम तो नहीं ।
मुस्लीम शक मुझ पर करते हैं ।
सब पत्थर मुझको कहते हैं।
सोचती हूं गर होती मील का पत्थर ।
कितना सुन्दर होता अपना जीवन ।
भूलों को राह दिखाती मैं
अपने भाग्य पर इठलाती मैं ।
राह पर हर आने जाने वालों को।
बैठी रह राह बताती मैं।
विधना ने भाग्य दिया ऐसा ।
मेरे किस्मत में था, मेरे तिजोरी बदा।
मैं पत्थर हूं प्रिय बस इक पत्थर ।
बस इतना ही परिचय तो है मेरा ।
सब नगीना कहकर मुझे बुलाते हैं।
पत्थर समझ मुझको तिजोरी में भर जाते हैं।
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