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रैंगीग भाग ३

जी सही ही निकला मेरा शक। आज हमें साफ - साफ कह दिया गया हमलोगों के लॉकर भरे हुए हैं आप प्रिंसपल से लॉकर मांग लें। संयोग कुछ ऐसा रहा वह छुट्टी में थी। मिसेज द्विवेदी ने कहा क्यों न जबतक मैडम नहीं आती उनलोगों से रिक्युएस्ट किया जाए कि ग्लास रख लें।
मैंने मना कर दी आप कहकर रखें , मैं हर दिन घर ले जाया करूंगी। जैसा कि मुझे याद है द्विवेदी के कहने पर भी उन लोगों का ज़बाब नहीं बदला और हम-दोनों अपने - अपनै ग्लास घर ले जाने लगे।
चार - पांच दिनों बाद मैडम आई । हम दोनों आॅफिस में पहुंचे । मिसेज द्विवेदी ने जिस लहजे में मैडम को बताया, उससे मैं समझ गई इनके प्रस्ताव को उस दिन  लोगों ने मानने से इन्कार कर दिया होगा ? मैडम ने एटेन्डेन्ट को पुकारने के लिए घंटी बजाई । चाभी का गुच्छा देकर बोली जाकर देखिए कोई लॉकर खाली हो तो इन्हें दे दें। थोड़ी देर में पता चल गया लाॉकर दो नहीं एक ही खाली है। यह सुनते ही मिसेज द्विवेदी खुशी से चमक उठी कोई बात नहीं एक में ही हम दोनों अभी एडजस्ट कर देगें।
चाभी लेकर आते समय हमारे खूशी का ठिकाना नहीं था। स्टाफ रूम में कुछ लोगों को देखकर लगा इन्हें हमारे लॉकर मिलने से सदमा पहुंचा है। यह महसुस होते खुशी दुगुनी हो गई। उसे साफ - सुथरा कर उसमें अपने - अपने ग्लास, चाॅकलेट,डस्टर रख दिया हमने। चाभी एक ही थी, मुझे देते हुए द्विवेदी जी ने कहा आप रखो ,आपके घर के पास हटिया लगती है एक डुप्लीकेट बना लेना। लाॅटरी पर नाम लिखनी थी, यह जरूरी भी था अक्सर स्टूडेन्ट को लॉकर से सामान लाने भेजा दिया जाता था। नाम नहीं होगें तो उन्हें परेशानी हो। हम दोनों ने अपने अपने नाम लिख दिए।
हमें क्या पता था कल की खुशी आज दर्द की कहानी बन जाएगी। जैसे ही मैं विद्यालय पहुंची। जब भी कोई चीज हम घर में लाते ,उसे बार-बार  देखते हैं। हालांकि कुछ दिनों बाद ऐसी बात नहीं रह जाती। हर नई वस्तु का क्रेज होता है। स्टाफ रूम में पहुंचते ही अनायास नजरें लॉकर पर गई । पर यह क्या इसपर कुछ लिखा दिखाई दिया। कुछ समझ नहीं आया यह क्या है। नजदीक जाकर देखा तो आंखें फटी की फटी रह गई। मैं ने अपने नाम को सौर्ट में एन- के- शर्मा लिखा था। एन के सामने नाक, के के सामने कान शर्मा यानि नाक -कान    शर्मा लिखा था। मेरा मन भर आया आंखों में आंसू छलक आए। स्टाफ रूम में मेरे प्रतिद्वन्दी की भीड़ थी । इनके सामने रो पड़ूंगी ऐसा लगा मुझे।
मैं सीधे बाथरूम में भागी , जी भर कर रोई। लकड़ा दी समझ गई थी, मैं रोकर आई हूं!। उन्होंने कहा अगर ऐसे रोती रहोगी तो तुम कर ली नौकरी। तुमको बुरा लगता है जानने पर और तंग करेंगी। मजबूत बनो वादा क्यों तुम अब कभी भी इन लोगों के कारण रोओगी नहीं। मैं भी मन ही मन अपने से यही वादा कर रही थी। मैंने एक कागज पर फिर से अपना नाम लिखा और उसके उपर चिपका दिया।
दूसरे दिन जब पहुंचती हूं तो क्या देखती हूं। कागज पर मेरी तस्वीर बनी हुई है, जिसमें मूंछ दाढ़ी बनी थी। न जाने ऐसा क्या हुआ एकाएक मेरे मुंह से निकला, अरे वाह मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था मैं आदमी होती तो इतना हैंडसम होता।
मुझे याद है कैसे पीने ड्राप साईलेन्स हो गया था वहां । शायद मेरे दोस्तों ने सोचा नहीं होगा मैं ऐसा ज़बाब दूंगी। उन्होंने सोचा होगा मैं फिर बाथरूम जाकर रोऊगीं ।
याद है वह दिन और आज का दिन एहसानमंद हूं मैं अपने दोस्तों का जिन्होंने रैंगीग करके मुझे खुद पर हंसना सीखा दिया 

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