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डर लगता है ?

होली, दिवाली ईद आने से डर लगता है ।
हवा ऐसी है अब तो अपने घर जाने से डर लगता है।

कितने बेगाने से लगते हैं जो सब थे अपने ।
अब तो उनके बेगानेपन से डर लगता है ।

रोने को जी करें तो कहां जाकर रोया जाए।
खुशी का माहौल है भला कैसे यहां रोया जाए।

अपने दर्द को आखिर कब तक कोई छुपाएगा।
एक न एक दिन यह हकीकत भी खुल जाएगा।

ईद हो या कि हो होली, अब तो यूं ही गुजर जाती है ।
न तू मेरे घर को आते हो, न मैं ही तेरे दर पर जाता हूं।
गले मिले भी तो कोई मिले कैसे ?
 अब गले मिलने से भी डर लगता है।

कहने को तो हजारों है अपने, समय पर सब छोड़ जाते हैं।
घर उनका भूला नहीं हूं मैं, दरवाजे में तेरे ताले नजर आते हैं।

डर न जमाने का न तेरा है, अपनी साया ही मुझे डराती है।
उठ जाता हूं गहरी नींद से, जब भी गले मिलने कोई आता है।

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