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तुम्हें पाकर धरती यह धन्य हुई

तेरे जिन हाथों ने शिशु को जमीन पर उतारा ।
उन हाथों ने धरा को जन्नत बनाने की ठानी है।
तेरे हाथों में खुदा ने कितनी बरकत दी है ।
हर शिशु पहला सांस लेता है तेरी हाथों में।
हर पौधे तेरी हाथों में आकर संवर जाते है।
न जाने कितने रूप है स्मिता ममता की तू तो मुरत है।
तुम्हें नमन करूं तो करू कैसे पुष्प पर पुष्प धरूं कैसे?
जब जरा बहुत अकुलाती तुम जैसों की गुहार लगाती है।
तुम जैसो को पाने हेतू यह धरती सौ-सौ पुण्य कमाती है।
तुम्हें भेज इस धरा पर खुदा भी अपना फर्ज चुकाता है ।
तुम हरियाली की देवी हो तुझे पाकर धरती यह धन्य हुई।
                        यह चार पंक्तियां डा पुष्प को समर्पित है
जो आठ घंटे प्रसूति विभाग में आने वाले नवजात शिशु को
अपने हाथों में धरती पर पहली सांस लेने के साथ यह वादा
 करती है, इस धरती पर पेड़-पौधे लगाकर इसे आगे आने वाले
बच्चों को हरी भरी धरती देंगी। अपनी कठिन परिश्रम से सारे
बगीया को शोभित रखेंगी।
                                  नगीना शर्मा

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