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क्षणिकाए- ३२

बहुत दूर तक आ गई मैं तेरे साथ चलते-चलते ।
थक गई हूं अब मैं बहुत तेरा मनुहार करते-करते।

माना कि बहुत प्यारा था अजीज बहुत था।
रिश्तों की लाशे अब ढोई नहीं जाती।
पर मरे हुए रिश्ते अब ढोए नहीं जाते।

जिन्दा रहने की वजह थी तो ढेरों।
 तुम्हें बस एक वजह मिली और मर लिए।

रिश्ते बचाने को जो मैं झूकता रहा।
उसने झूकने को मेरी आदत समझ लिए।

रिश्ते तोड़ने की मेरे पास लाखों वजह थी।
तुम्हें एक वजह मिला बस तोड़कर चल दिए।

सोचा न था इतनी कमजोर होगी घर की बुनियादे।
बस इक हवा के झोंके ने घर को गिरा दिए।

जाने कैसे लोग थे जो ठोकरों से संभल गए।
एक हम हैं ठोकरों पर ठोकरें खाते चले गए।

इस गली में भूलकर अब आए नहीं कोई।
इसलिए हमने मील के पत्थर हटा दिए।

आना रहता तो वह कब का आ गया होता।
जब बात आई समझ में तो बत्ती बुझा दिए।

अंधेरी रात थी एक तेरा एक साथ था।
हाथ में मशाल लिए तू मेरे साथ था।
मशाल देकर जाते तो कोई और बात थी।
जाते - जाते न जाने क्यूं उसको बुझाने दिया।

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