मां मुझे लेने आई । मेरे बैठते ही उन्होंने पूछा तो क्या कहा सुबोध ने, तुमने हां तो कर दी न। मैं अभी कुछ बातें करना नहीं चाहते रही थी, लेकिन जानती थी मैं चुप रही तो खामखां मां का बर्थडे प्रेसर बढेगा।
मेरी सबसे अच्छी सहेली मां ही थी, मैं उनसे कुछ भी छुपाती नहीं थी। मां को मैंने सबकुछ बता दिया। मां ने कहा देख नीतू अभी सुबोध परेशान हैं,धीर धीरे वह सब कुछ भूलकर जाएगा। समय ऐसा मरहम है जो बड़ा से बड़ा जख्म भर देता है,तुम्ह हां कर देनी चाहिए थी। पूरे रास्ते मां मुझे तरह - तरह से समझाती रही। मेरा क्या भरोसा पके आम कभी टपक लूं, फिर तू अकेली रह जाएगी। तेरी शादी हो जाए तो निश्चित होकर मर पाऊगी।
दो - तीन दिन तक मैं उधेर-बुन में पड़ी रही। न में जबाब मेरा दिल देने को तैयार नहीं था, हां बोलने में डर रही थी। मां मेरे लिए यह आसान होगा ? एक ऐसे इन्सान के साथ जिन्दगी गुजार पाऊंगी जो किसी और से प्यार करता हो। कितनी आसानी से सुबोध बता रहा था मैं अॉफिस से आकर चाय नहीं शराब पीता हूं और दो तीन घंटे अकेले रहना चाहता हूं।
मेरे दिल ने कहा यह क्यो नहीं देखती अगर वह इन बातों को छूपा जाता तो तुम क्या करती। मेरे दिल की सारी बातें मुझे अच्छी लगती थी।
मेरी हां का इंतजार मेरी मां के साथ आंटी को भी था। सुबोध का मैं कह नहीं सकती, मैंने जो महसुस किया था, इससे लगता ,वह डिप्रेशन में था और अकेले रहना चाहता था। उसने मुझसे ना सुनने की उम्मीद में ही ऐसी बातें की थीं।
मैं हां आ कर दी, करनी ही थी, मैं अपने दिल के हाथों मजबूर थी। मेरे हां करने की देरी थी, मां के बक्शे खुलने लगें, किस गहने को तोड़वाने हैं, कौन सी डिजाइन बनवानी हैं। मैंने मना भी किया, पर मेरी मां कब सुनने वाली है। रिश्तेदार को कैसे छोड़ सकती हूं, हमेशा ताने सुनने पड़ेंगे।
इसी बीच सुबोध का फोन आया, उसके आवाज में मुझे खुशी की खनक सुनाई दी। नीतू तुम्हारे कपड़े गहने खरीदने की मां ज़िद्द कर रहीं हैं। तुम सन्डे को फुर्सत में हो तो मैं तुम्हें लेने आ जाता हूं। मैंने कहा मां को फोन देती हूं आप बात कर लें, दरअसल मैं ज्यादा देर बात करके अपनी खुशी सुबोध पर जाहिर नहीं होने देना चाहती थी।
शादी जैसे सबकी होती हैं मेरी भी हो गई। फर्क सिर्फ इतना था, मैं विदा नहीं हुईं,मा के गले लगकर रोई नहीं।
मेरी शादी ने मुझे एक मां और दे दिया, एक प्यारा सा बच्चा दे दिया। सब कुछ पा गई।
स्त्री का मन भी विचित्र होता हैं, एक मन था कि अक्सर उदास हो जाया करता था। मैंने जिसे 💓 से चाहा वह मेरे सिवा किसी और का था कोई बात नहीं अब भी वह कहीं न कहीं जसिका के यादों में डूबा रहता है, सोचकर दिल भारी हो जाता था। सुबोध का मेरा ख्याल रखना। कभी-कभी नाटक सा प्रतीत होता है। न जाने क्यों इन्सान जिससे मुहब्बत करता है उसे किसी और से बांटना नहीं चाहता।
कुछ साल बाद सुबोध ने फ्लैट ले लिया । मेरी मां चल बसीं। मैं ,सुबोध मां जी और मेरा बेटा रोबिन नए घर में जाने वाले थे, सुबोध ने मुझे और मां जी को बुलाया और कहा आज मैं आप दोनों से एक बात करना चाहता हूं, यह समझें मैं वादा करना चाहता हूं, ने घर में मां ,नीतू, रोबिन और मैं जाऊंगा, जसिका उस घर में नहीं जाएगी मां । घर उनसे होता जो आपसे मुहब्बत करते हो ,उनसे नहीं जिन्हें आप मुहब्बत करते हो और उन्हें आपसे नफरत हो।
एक ही क्षण में सुबोध ने एक मकान को घर बना दिया और मैं मूक बनी एकटक सुबोध को देखते रह गई।
मेरी सबसे अच्छी सहेली मां ही थी, मैं उनसे कुछ भी छुपाती नहीं थी। मां को मैंने सबकुछ बता दिया। मां ने कहा देख नीतू अभी सुबोध परेशान हैं,धीर धीरे वह सब कुछ भूलकर जाएगा। समय ऐसा मरहम है जो बड़ा से बड़ा जख्म भर देता है,तुम्ह हां कर देनी चाहिए थी। पूरे रास्ते मां मुझे तरह - तरह से समझाती रही। मेरा क्या भरोसा पके आम कभी टपक लूं, फिर तू अकेली रह जाएगी। तेरी शादी हो जाए तो निश्चित होकर मर पाऊगी।
दो - तीन दिन तक मैं उधेर-बुन में पड़ी रही। न में जबाब मेरा दिल देने को तैयार नहीं था, हां बोलने में डर रही थी। मां मेरे लिए यह आसान होगा ? एक ऐसे इन्सान के साथ जिन्दगी गुजार पाऊंगी जो किसी और से प्यार करता हो। कितनी आसानी से सुबोध बता रहा था मैं अॉफिस से आकर चाय नहीं शराब पीता हूं और दो तीन घंटे अकेले रहना चाहता हूं।
मेरे दिल ने कहा यह क्यो नहीं देखती अगर वह इन बातों को छूपा जाता तो तुम क्या करती। मेरे दिल की सारी बातें मुझे अच्छी लगती थी।
मेरी हां का इंतजार मेरी मां के साथ आंटी को भी था। सुबोध का मैं कह नहीं सकती, मैंने जो महसुस किया था, इससे लगता ,वह डिप्रेशन में था और अकेले रहना चाहता था। उसने मुझसे ना सुनने की उम्मीद में ही ऐसी बातें की थीं।
मैं हां आ कर दी, करनी ही थी, मैं अपने दिल के हाथों मजबूर थी। मेरे हां करने की देरी थी, मां के बक्शे खुलने लगें, किस गहने को तोड़वाने हैं, कौन सी डिजाइन बनवानी हैं। मैंने मना भी किया, पर मेरी मां कब सुनने वाली है। रिश्तेदार को कैसे छोड़ सकती हूं, हमेशा ताने सुनने पड़ेंगे।
इसी बीच सुबोध का फोन आया, उसके आवाज में मुझे खुशी की खनक सुनाई दी। नीतू तुम्हारे कपड़े गहने खरीदने की मां ज़िद्द कर रहीं हैं। तुम सन्डे को फुर्सत में हो तो मैं तुम्हें लेने आ जाता हूं। मैंने कहा मां को फोन देती हूं आप बात कर लें, दरअसल मैं ज्यादा देर बात करके अपनी खुशी सुबोध पर जाहिर नहीं होने देना चाहती थी।
शादी जैसे सबकी होती हैं मेरी भी हो गई। फर्क सिर्फ इतना था, मैं विदा नहीं हुईं,मा के गले लगकर रोई नहीं।
मेरी शादी ने मुझे एक मां और दे दिया, एक प्यारा सा बच्चा दे दिया। सब कुछ पा गई।
स्त्री का मन भी विचित्र होता हैं, एक मन था कि अक्सर उदास हो जाया करता था। मैंने जिसे 💓 से चाहा वह मेरे सिवा किसी और का था कोई बात नहीं अब भी वह कहीं न कहीं जसिका के यादों में डूबा रहता है, सोचकर दिल भारी हो जाता था। सुबोध का मेरा ख्याल रखना। कभी-कभी नाटक सा प्रतीत होता है। न जाने क्यों इन्सान जिससे मुहब्बत करता है उसे किसी और से बांटना नहीं चाहता।
कुछ साल बाद सुबोध ने फ्लैट ले लिया । मेरी मां चल बसीं। मैं ,सुबोध मां जी और मेरा बेटा रोबिन नए घर में जाने वाले थे, सुबोध ने मुझे और मां जी को बुलाया और कहा आज मैं आप दोनों से एक बात करना चाहता हूं, यह समझें मैं वादा करना चाहता हूं, ने घर में मां ,नीतू, रोबिन और मैं जाऊंगा, जसिका उस घर में नहीं जाएगी मां । घर उनसे होता जो आपसे मुहब्बत करते हो ,उनसे नहीं जिन्हें आप मुहब्बत करते हो और उन्हें आपसे नफरत हो।
एक ही क्षण में सुबोध ने एक मकान को घर बना दिया और मैं मूक बनी एकटक सुबोध को देखते रह गई।
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