रास्ते भर मैं सुबोध/ सुधीर के बारे में ही सोचती रही। उसका मुरझाया हुआ चेहरे ने मुझे अजीब सी बेचैनी भर दी थी।घर आने पर भी उसी का ख्याल। समझ नहीं पा रही क्यो ? खाते सोते यहां तक की अॉफिस के काम में भी मन नहीं लग रहा था।
कहीं मुझे प्यार तो नहीं हो गया, ढेरों कहानियों में पढ़ा था, मुहब्बत कब, किससे हो जाय इन्सान खुद समझ नहीं पाता।फिर मुझे खुद पर ही हंसी आती, मुहब्बत और मुझे हो ही नहीं सकता। जब उम्र थी मुहब्बत करने की तो सहेलियों की प्ररेणा कहानी सुनकर मजाक उड़ाने वाली मैं,और अब तीस के उम्र में पर्याय, खुद ही मन ही मन ही मन हंस पड़ती। फिर यह क्या है? शायद सहानुभूति तो नहीं?
हर समय आंटी के फोन का इंतजार करती, जब इंतजार करते सप्ताह बीत गए और फोन नहीं आया सोचा मैं ही बातकर लेती हूं। फोन लगाया तो सुबोध की आवाज आई हेलो!! मेरी तो आवाज ही गले में अटक गई हो जैसे किसी तरह कहा मुझे आंटी से बात करनी है। उधर से ज़बाब मिला अभी वाश रूम से आती है, फिर आपसे बात करवाता हूं। कोई जरूरी बात हो तो मुझसे कह सकतीं हैं मैं सुबोध बोल रहा हूं। जी ऐसी कोई बात नहीं ( मन में आया कहूं मैं आपके आवाज़ से जन्मों से परिचित हूं )
घंटे भर बाद आंटी का फोन आया। हमेशा की तरह कैसे हो बेटे से बातें शुरू हुई। मैं तो इनदिनो सुबोध के लिए चिन्तित रहती हूं। अॉफिस से आता है चुपचाप बैठा रहता है, मुझसे तो क्या बच्चें से भी नहीं बातें करता। फोन भी बन्द कर देता के देता कहता हैं मुझे किसी से बातें करने की इच्छा नहीं होती। इसी तरह वह बातें करती जा रही थी और मैं चुपचाप सुन रहीं थीं। फिर उन्होंने मुझसे मेरे घर का पता लिया।
दूसरे दिन अॉफिस से लौटीं तो मां ने बताया आंटी आई थी। काम पर जाते समय सुबोध छोड़ गया था, दिनभर बातें करती रही। मां बता रहीं थीं बहुत घूमा फिराकर।
दरअसल उन्होंने मां से मेरी और सुधीर की शादी की बातें करी थी। मां अंदर से अपनी खुशी छिपाने की कोशिश कर रहीं थीं, उपर से दिखा रही थी, ऐसी कोई बात नहीं हैं। मां ने कहा मैं तो शादी के लिए उससे पहले भी कई बार कहा मेरी सुनती कहा है। आप ही समझाकर देखें। लेकिन मेरी एक बात बहनजी आपको माननी होगी , हम सब इसी घर में रहेंगे। इस पर आंटी को कोई एतराज़ नहीं , यह कहते हुए मां की खुशी मुझसे छिपी नहीं रहीं। मां ने पूछा सुबोध क्या कहता है, सुबोध कहता है एकबार तुमसे बातें करेगा फिर हां या ना कहेगा।म मैं भी रविवार का दिन फिक्सड कर दिया ।
सारी बातें सुनकर मेरी समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूं। मुझे भी अपनी खुशी छिपाने में मुश्किल लग रही थी। मां ने पूछा मैंने सही किया ना? मन कर रहा कह दूं सौ प्रतिशत सही किया, लेकिन सामने से कहा आप दोनों ने जब सब कुछ तय कर ही लिया चलिए ठीक है।
अब मेरी रूटीन कालेन्डर के पन्नों में जा अटकी, रविवार चार, तीन दो और यह रहा एक। एक होटल में सुबोध ने जगह बुक करवाया था। मां से आंटी ने कहा सुबोध लेने आ जाएगा, मां ने कहा मुझे भी मार्केट जानी है मैं नीतू को छोड़ दूंगी। मै और मां दोनों होटल पहुंचे, मैंने मां से कहा भी आप भी साथ ही रहें। मां यह कहकर आगे बढ़ गई, फोन कर देना मैं आ जाऊगी।
थोड़ी ही देर में सुबोध आते दीखे। सॉरी के साथ उन्होंने बातें शुरू की जाम में फंसे हुए थे। चलिए कुछ खाने का अॉडर दें दो मैं नहीं जानता तुम को क्या पसंद है। मैं सोच नहीं पा रहीं थीं कैसे बोलूं, सुबोध तो पल भर में ही आप से तुम पर आ गए थे, मैं जो ऑफिस में हजारों से डील करती क्या हो गया था मुझे ? मैंने सोचा बात करनी है तो झिझक छोड़नी होगी और फिर बेटर भी क्या सोचेगा। मैंने ऑडर बुक से खाने का सामान देखते हुए सोचा मुझे भी उनकी पसंद पूछनी चाहिए, लेकिन पूछ ना पाई।
होटल में खाने मंगवाओ तो घंटों लग जाते है । हमारे पास काफी समय था बातें करने को। बातें सुबोध ने ही शुरू की,तुम मेरे बारे में तो सब कुछ जानती ही हो, क्या तुम समझती हो शादी के बाद मैं जसिका को पूरी तरह भूल जाऊंगा ? मुझे ऐसा नहीं लगता,मै जसिका को चाहकर भी नहीं भूल सकता। मां के ज़िद्द में आकर तुम हां कर भी दोगी तो क्या तुम तमाम उम्र इस बोझ को उठा पाओगी कि मेरे मन में कोई और भी है। मैं शाम में किसी से बातें नहीं करता जानती हो क्यो ? कुछ चलती कुछ बुरी यादें ही सही , जसिका के साथ बिताए बातों को सोचना अच्छा लगता है मुझे। जसिका को न सही मुझे तो उससे मुहब्बत थी हैं और रहेगी।
ऐसा भी हो सकता जसिका कभी भूले से मुझे मिल जाए, तो मैं तुम्हें छोड़कर जा भी सकता हूं। मैंने सोचा तुमसे सब कुछ बता दूं इसी से तुम्हें मिलने को बुलाया। मुझे समझने की कोशिश करना । अभी ज़बाब देने की जरूरत नहीं दो चार दिन में सोचकर बताना।
बस यहीं थी हमारी पहली मुलाकात। खाना आने पर खाने खाते हुए मैं सोचते रहीं। आज से कुछ दिन पहले अगर मैं यह सब सुनती वहीं ऐसे इन्सान के मुह पर एक तमाचा जर देती, लेकिन आज जब मुझे भी किसी से प्यार हो गया तो समझ आ रही है इन्सान जिससे मुहब्बत करता है उसकी गलती माफ करते चलता जाता है।
कहीं मुझे प्यार तो नहीं हो गया, ढेरों कहानियों में पढ़ा था, मुहब्बत कब, किससे हो जाय इन्सान खुद समझ नहीं पाता।फिर मुझे खुद पर ही हंसी आती, मुहब्बत और मुझे हो ही नहीं सकता। जब उम्र थी मुहब्बत करने की तो सहेलियों की प्ररेणा कहानी सुनकर मजाक उड़ाने वाली मैं,और अब तीस के उम्र में पर्याय, खुद ही मन ही मन ही मन हंस पड़ती। फिर यह क्या है? शायद सहानुभूति तो नहीं?
हर समय आंटी के फोन का इंतजार करती, जब इंतजार करते सप्ताह बीत गए और फोन नहीं आया सोचा मैं ही बातकर लेती हूं। फोन लगाया तो सुबोध की आवाज आई हेलो!! मेरी तो आवाज ही गले में अटक गई हो जैसे किसी तरह कहा मुझे आंटी से बात करनी है। उधर से ज़बाब मिला अभी वाश रूम से आती है, फिर आपसे बात करवाता हूं। कोई जरूरी बात हो तो मुझसे कह सकतीं हैं मैं सुबोध बोल रहा हूं। जी ऐसी कोई बात नहीं ( मन में आया कहूं मैं आपके आवाज़ से जन्मों से परिचित हूं )
घंटे भर बाद आंटी का फोन आया। हमेशा की तरह कैसे हो बेटे से बातें शुरू हुई। मैं तो इनदिनो सुबोध के लिए चिन्तित रहती हूं। अॉफिस से आता है चुपचाप बैठा रहता है, मुझसे तो क्या बच्चें से भी नहीं बातें करता। फोन भी बन्द कर देता के देता कहता हैं मुझे किसी से बातें करने की इच्छा नहीं होती। इसी तरह वह बातें करती जा रही थी और मैं चुपचाप सुन रहीं थीं। फिर उन्होंने मुझसे मेरे घर का पता लिया।
दूसरे दिन अॉफिस से लौटीं तो मां ने बताया आंटी आई थी। काम पर जाते समय सुबोध छोड़ गया था, दिनभर बातें करती रही। मां बता रहीं थीं बहुत घूमा फिराकर।
दरअसल उन्होंने मां से मेरी और सुधीर की शादी की बातें करी थी। मां अंदर से अपनी खुशी छिपाने की कोशिश कर रहीं थीं, उपर से दिखा रही थी, ऐसी कोई बात नहीं हैं। मां ने कहा मैं तो शादी के लिए उससे पहले भी कई बार कहा मेरी सुनती कहा है। आप ही समझाकर देखें। लेकिन मेरी एक बात बहनजी आपको माननी होगी , हम सब इसी घर में रहेंगे। इस पर आंटी को कोई एतराज़ नहीं , यह कहते हुए मां की खुशी मुझसे छिपी नहीं रहीं। मां ने पूछा सुबोध क्या कहता है, सुबोध कहता है एकबार तुमसे बातें करेगा फिर हां या ना कहेगा।म मैं भी रविवार का दिन फिक्सड कर दिया ।
सारी बातें सुनकर मेरी समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूं। मुझे भी अपनी खुशी छिपाने में मुश्किल लग रही थी। मां ने पूछा मैंने सही किया ना? मन कर रहा कह दूं सौ प्रतिशत सही किया, लेकिन सामने से कहा आप दोनों ने जब सब कुछ तय कर ही लिया चलिए ठीक है।
अब मेरी रूटीन कालेन्डर के पन्नों में जा अटकी, रविवार चार, तीन दो और यह रहा एक। एक होटल में सुबोध ने जगह बुक करवाया था। मां से आंटी ने कहा सुबोध लेने आ जाएगा, मां ने कहा मुझे भी मार्केट जानी है मैं नीतू को छोड़ दूंगी। मै और मां दोनों होटल पहुंचे, मैंने मां से कहा भी आप भी साथ ही रहें। मां यह कहकर आगे बढ़ गई, फोन कर देना मैं आ जाऊगी।
थोड़ी ही देर में सुबोध आते दीखे। सॉरी के साथ उन्होंने बातें शुरू की जाम में फंसे हुए थे। चलिए कुछ खाने का अॉडर दें दो मैं नहीं जानता तुम को क्या पसंद है। मैं सोच नहीं पा रहीं थीं कैसे बोलूं, सुबोध तो पल भर में ही आप से तुम पर आ गए थे, मैं जो ऑफिस में हजारों से डील करती क्या हो गया था मुझे ? मैंने सोचा बात करनी है तो झिझक छोड़नी होगी और फिर बेटर भी क्या सोचेगा। मैंने ऑडर बुक से खाने का सामान देखते हुए सोचा मुझे भी उनकी पसंद पूछनी चाहिए, लेकिन पूछ ना पाई।
होटल में खाने मंगवाओ तो घंटों लग जाते है । हमारे पास काफी समय था बातें करने को। बातें सुबोध ने ही शुरू की,तुम मेरे बारे में तो सब कुछ जानती ही हो, क्या तुम समझती हो शादी के बाद मैं जसिका को पूरी तरह भूल जाऊंगा ? मुझे ऐसा नहीं लगता,मै जसिका को चाहकर भी नहीं भूल सकता। मां के ज़िद्द में आकर तुम हां कर भी दोगी तो क्या तुम तमाम उम्र इस बोझ को उठा पाओगी कि मेरे मन में कोई और भी है। मैं शाम में किसी से बातें नहीं करता जानती हो क्यो ? कुछ चलती कुछ बुरी यादें ही सही , जसिका के साथ बिताए बातों को सोचना अच्छा लगता है मुझे। जसिका को न सही मुझे तो उससे मुहब्बत थी हैं और रहेगी।
ऐसा भी हो सकता जसिका कभी भूले से मुझे मिल जाए, तो मैं तुम्हें छोड़कर जा भी सकता हूं। मैंने सोचा तुमसे सब कुछ बता दूं इसी से तुम्हें मिलने को बुलाया। मुझे समझने की कोशिश करना । अभी ज़बाब देने की जरूरत नहीं दो चार दिन में सोचकर बताना।
बस यहीं थी हमारी पहली मुलाकात। खाना आने पर खाने खाते हुए मैं सोचते रहीं। आज से कुछ दिन पहले अगर मैं यह सब सुनती वहीं ऐसे इन्सान के मुह पर एक तमाचा जर देती, लेकिन आज जब मुझे भी किसी से प्यार हो गया तो समझ आ रही है इन्सान जिससे मुहब्बत करता है उसकी गलती माफ करते चलता जाता है।
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