समय अपनी गति से पंख लगाकर उड़ता रहा।धीरे- धीरे दूरी रिश्तों को धूंधला कर देती है। शुरु में मैं भी अॉफिस में बैठे -बैठे मां जी को फोन लगा लिया करती थी या फिर उनके फोन आ जाया करते थे।इधर मैंने भी फोन नहीं किया ना सामने से उनका ही फोन आया।
एकाएक फोन देखकर मैं चौंक उठी,हां मां जी सुनाए।कैसी है आप ? ठीक हूं बेटे। मैंने तुम्हें फोन किया कल रविवार है तुम आती तो तुमसे कुछ बातें करनी हैं। कौन सी बात बताएं ? तुम आओगी तभी बताऊंगी। वैसे मुझे भी उनसे मिले एक अरसा हो गया था। मैंने कहा ठीक है मैं मिलती हूं आपसे। नमस्ते कहकर फोन काट दी।
आज रविवार है और घर में ठेरो काम है, साथ ही मां जी से मिलने भी जानी है।सारे कामों को निबटारे,खाना खाकर तैयार होते शाम के चार बज गए।सोचा घंटे दो घंटे तो लग ही जानी है,लौटने में भी जल्दी करनी होगी। मेरी मां अपनी छोटी बहन के यहां जा रही,वह भी साथ नहीं होंगी।
इन्हीं बातों में खोई ईई मैं मां जी के दरवाजे की घंटी बजा दी।आशा के विपरीत दरवाजे पर एक खूबसुरत नौजवान को देख मैं सकपका गई। मैं कुछ बोलूं उससे पहले मां जी की आवाज़ आई आ जाओ नीतू यह मेरा बेटा सुबोध है,परसों ही विदेश से आया है।मेरे अंदर आते ही उन्होंने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा बेटा यह नीतू है बैंक में काम करती है, मैंने इसकी चर्चा तुम से की है। इसके भी पापा नहीं हैं केवल मां है। फिर उन्हें ध्यान आया मैं भी यहां हूं, अरे तुम तो बैठी ही नहीं अब तक। बैठो- बैंठो। सुधीर मैंने नीतू को आज तक कुछ नहीं खिलाई,आज तुम कुछ मीठा नमकीन ला दों बिटिया के लिए। मैं मनाकर रही थी इसकी कोई जरूरत नहीं।मुझे ऐसा लगा वे सुबोध को यहां से भेजकर मुझसे कुछ बातें करना चाहती थी।
जैसा मैंने सोचा था वहीं हुआ।सुबोध के जाते ही मां जी ने बताना शुरू किया ,जानती हो बेटे सुबोध बिना बताए ही एका एक आ गया, पूछने पर बोला मां मुझे आपसे बात करने में शर्म आ रही थी। साथ में मेरा पोता को भी लेते आया। ( मैं पूछना चाहता रही थी कि आपकी बहु ?) पूछती उससे पहले ही उन्होंने चादर उठाकर बच्चें का चेहरा दिखाया, नीतू कैसा है मेरा पोता ? बहुत सुदर मां जी । मेरे ज़बाब सुनकर खुशी की लहर सी दौड़ गई उनके चेहरे पर,सुबोध भी ऐसा ही भोला दिखता था।
लगता है उन्होंने मेरे मन की भावना पढ़ लिए बोली जानती हो बेटे जसिका ने सुबोध को छोड़ दिया। सुबोध ने बताया मां आप नहीं समझोगी, इसलिए आपसे मैंने शादी की बात कही। आजकल लोग रिलेशनशिप में रहते हैं, मैं और जसिका भी वैसे ही रहते थे। मैंने शादी के लिए उससे कई बार कहा भी लेकिन शादी को वह बंधन समझती थी, जो उसे पसंद नहीं था। मां मैं आपको वहां कैसे ले जाता, उसे तो मेरा आपसे बात करना भी पसंद नहीं था। मैं घर से बाहर जाकर आपसे बातें करता था। जब लौटकर आता मेरा फोन चेक करती और फिर लड़ाई शुरू कर देती। मां मैं जसिका से बहुत प्यार करता था, मैं उसे खोना नहीं चाहता था। मैंनै अपना फोन बदल लिया और सिन्हा जी को सारी बात बता दी। पांच लाख मैंने फिक्स डिपाजिट में डाल दिए ताकि वह आपके खाने रहने की व्यवस्था कर सके। मैंने उन्हें फोन नम्बर दे दिए थे, साथ ही यह हिदायत भी कर दी थी कि वह आपको नम्बर न दें।
बच्चें के जन्म के बाद हमारी लड़ाई और बढ़ गई, उसने बच्चे को जन्म देने से मना किया था,मेरी जिद्द से ही यह बच्चा संसार में आया था।
सच्चाई कुछ और थी मां, वह मुझसे उब गई थी। उसे कोई और पसंद आ गया था। आपको शायद कुछ अजीब सा लगें परन्तु यह रिलेशनशिप में ऐसा ही होता है। कोई बंधन नहीं जब तक इच्छा हो साथ रहो फिर अलग हो जाओ।
परन्तु हमारे साथ रोबिन था, बच्चें से मां ना छीने, मैं झूकता चला गया। वह मेरे साथ रहने को तैयार नहींं थी। जब अलग होने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा तब बच्चें का सवाल सामने था। मां जसिका ने बच्चें की कीमत पचास लाख लगाए, पचास लाख दे दो बच्चे को तुम रखों। मैं रात दिन सोचता रहा क्या करूं? मेरे नजर में एक मकान आया जिसे बेचकर पैसे दिए जा सकते हैं। मै यहां से मकान बेचकर पैसा जसिका को दे दिया। इसके बाद भी मै उससे अनुरोध करता रहा बच्चे के खातिर हमें साथ रहना चाहिए लेकिन उसने इनकार कर दिया।
सारा कुछ बताने पर मां जी ने पूछा बेटे क्या ऐसा भी रिलेशनशिप होता है ???
एकाएक फोन देखकर मैं चौंक उठी,हां मां जी सुनाए।कैसी है आप ? ठीक हूं बेटे। मैंने तुम्हें फोन किया कल रविवार है तुम आती तो तुमसे कुछ बातें करनी हैं। कौन सी बात बताएं ? तुम आओगी तभी बताऊंगी। वैसे मुझे भी उनसे मिले एक अरसा हो गया था। मैंने कहा ठीक है मैं मिलती हूं आपसे। नमस्ते कहकर फोन काट दी।
आज रविवार है और घर में ठेरो काम है, साथ ही मां जी से मिलने भी जानी है।सारे कामों को निबटारे,खाना खाकर तैयार होते शाम के चार बज गए।सोचा घंटे दो घंटे तो लग ही जानी है,लौटने में भी जल्दी करनी होगी। मेरी मां अपनी छोटी बहन के यहां जा रही,वह भी साथ नहीं होंगी।
इन्हीं बातों में खोई ईई मैं मां जी के दरवाजे की घंटी बजा दी।आशा के विपरीत दरवाजे पर एक खूबसुरत नौजवान को देख मैं सकपका गई। मैं कुछ बोलूं उससे पहले मां जी की आवाज़ आई आ जाओ नीतू यह मेरा बेटा सुबोध है,परसों ही विदेश से आया है।मेरे अंदर आते ही उन्होंने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा बेटा यह नीतू है बैंक में काम करती है, मैंने इसकी चर्चा तुम से की है। इसके भी पापा नहीं हैं केवल मां है। फिर उन्हें ध्यान आया मैं भी यहां हूं, अरे तुम तो बैठी ही नहीं अब तक। बैठो- बैंठो। सुधीर मैंने नीतू को आज तक कुछ नहीं खिलाई,आज तुम कुछ मीठा नमकीन ला दों बिटिया के लिए। मैं मनाकर रही थी इसकी कोई जरूरत नहीं।मुझे ऐसा लगा वे सुबोध को यहां से भेजकर मुझसे कुछ बातें करना चाहती थी।
जैसा मैंने सोचा था वहीं हुआ।सुबोध के जाते ही मां जी ने बताना शुरू किया ,जानती हो बेटे सुबोध बिना बताए ही एका एक आ गया, पूछने पर बोला मां मुझे आपसे बात करने में शर्म आ रही थी। साथ में मेरा पोता को भी लेते आया। ( मैं पूछना चाहता रही थी कि आपकी बहु ?) पूछती उससे पहले ही उन्होंने चादर उठाकर बच्चें का चेहरा दिखाया, नीतू कैसा है मेरा पोता ? बहुत सुदर मां जी । मेरे ज़बाब सुनकर खुशी की लहर सी दौड़ गई उनके चेहरे पर,सुबोध भी ऐसा ही भोला दिखता था।
लगता है उन्होंने मेरे मन की भावना पढ़ लिए बोली जानती हो बेटे जसिका ने सुबोध को छोड़ दिया। सुबोध ने बताया मां आप नहीं समझोगी, इसलिए आपसे मैंने शादी की बात कही। आजकल लोग रिलेशनशिप में रहते हैं, मैं और जसिका भी वैसे ही रहते थे। मैंने शादी के लिए उससे कई बार कहा भी लेकिन शादी को वह बंधन समझती थी, जो उसे पसंद नहीं था। मां मैं आपको वहां कैसे ले जाता, उसे तो मेरा आपसे बात करना भी पसंद नहीं था। मैं घर से बाहर जाकर आपसे बातें करता था। जब लौटकर आता मेरा फोन चेक करती और फिर लड़ाई शुरू कर देती। मां मैं जसिका से बहुत प्यार करता था, मैं उसे खोना नहीं चाहता था। मैंनै अपना फोन बदल लिया और सिन्हा जी को सारी बात बता दी। पांच लाख मैंने फिक्स डिपाजिट में डाल दिए ताकि वह आपके खाने रहने की व्यवस्था कर सके। मैंने उन्हें फोन नम्बर दे दिए थे, साथ ही यह हिदायत भी कर दी थी कि वह आपको नम्बर न दें।
बच्चें के जन्म के बाद हमारी लड़ाई और बढ़ गई, उसने बच्चे को जन्म देने से मना किया था,मेरी जिद्द से ही यह बच्चा संसार में आया था।
सच्चाई कुछ और थी मां, वह मुझसे उब गई थी। उसे कोई और पसंद आ गया था। आपको शायद कुछ अजीब सा लगें परन्तु यह रिलेशनशिप में ऐसा ही होता है। कोई बंधन नहीं जब तक इच्छा हो साथ रहो फिर अलग हो जाओ।
परन्तु हमारे साथ रोबिन था, बच्चें से मां ना छीने, मैं झूकता चला गया। वह मेरे साथ रहने को तैयार नहींं थी। जब अलग होने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा तब बच्चें का सवाल सामने था। मां जसिका ने बच्चें की कीमत पचास लाख लगाए, पचास लाख दे दो बच्चे को तुम रखों। मैं रात दिन सोचता रहा क्या करूं? मेरे नजर में एक मकान आया जिसे बेचकर पैसे दिए जा सकते हैं। मै यहां से मकान बेचकर पैसा जसिका को दे दिया। इसके बाद भी मै उससे अनुरोध करता रहा बच्चे के खातिर हमें साथ रहना चाहिए लेकिन उसने इनकार कर दिया।
सारा कुछ बताने पर मां जी ने पूछा बेटे क्या ऐसा भी रिलेशनशिप होता है ???
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