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घर-- भाग--३

आज हास्पिटल से मेरी छुट्टी होने वाली थी, मांजी का चेहरा यह सुनकर उतर सा गया। मैंने उनसे कहा आप भी जल्द ठीक होकर घर आ जाएं।मैंने आपसे घर का पता ले लिया है ,साथ ही आपके फोन भी मेरे पास है मैं आपसे मिलूंगी।
कहने को कह दिया पर आज फुर्सत कहां मिल पाती हमें कि अपने सिवा किसी को याद किया जा सके।मुझे माताजी से लगाव हो गया था, सो मुझे उनकी चिन्ता लगी थी, दो - तीन बार फोन भी लगाई परन्तु बातें न हो सकी।
फिर एक दिन उनका फोन आया तो पता लगा वह घर आ गई है। मैंने मां से उनकी सारी राम कहानी सुना रखी थी। आज रविवार का दिन था। मैंने मां से कहा चलिए आॅटी को मिल आते हैं। हम दोनों मां बेटी उनके घर पहुंचे।
मेरी मां ने पूछा आपको पोता हुआ या पोती? उन्होंने ज़बाब मैं बताया बहनजी मुझे पता नहीं। सुबोध पहले फोन करता था, इस बार जो गया तो अब उसके फोन भी नहीं आते। मैं जब फोन करती तो गलत नम्बर बताता है। घर के मालिक से कहा तो उन्होंने जबाब दिया आप चिन्ता न करें ,शायद फोन बदल लिए होगें, खुद फोन करेंगे। परन्तु बहन जी ऐसा कुछ नहीं हुआ, सुबोध का फोन नं आना था न आया। वह तो मकान मालकिन इतनी हंसमुख थी दिन तो उनके साथ बीत जाती और रातें रोते हुए या फिर पागलों सी रात में बैठकर एल्बम देखती रहती हूं, सोचती हूं कितना भोला भाला लगता है मेरा सुबोध। आखिर मुझसे क्या गलती हो गई या फिर कैसी मजबूरी है उसके साथ जो बात नहीं करता। कभी-कभी मन आशंका से भर जाता है कहीं ??? फिर सोचती हूं नहीं ऐसा नहीं हो सकता भगवान इतने निष्ठूर नहीं हो सकते। बहन जी मेरी जिन्दगी बोझ बन गई है जीने की इच्छा नहीं,मौत है कि मुझ अभागी को आती नहीं।ऐसा कहते - कहते वो रहा पड़ी। पुरा वातावरण दुखी हो उठा। मेरी मां ने उन्हे बहुत ढांढस दिया । घबराए नहीं भगवान और समय सब ठीक कर देगा, आप धीरज रखें। हमलोग फिर सुबोध के आने का दिलासा उन्हें दिया यह जानते हुए कि अब सुबोध लौटकर आने वाला नहीं। उसे मकान बेचकर पैसे निकालने थे सो निकाल लिए,लेकिन जो मां बेटे के पास जाने का इंतजार कर रही हो, पास पोर्ट मिलने पर बहुत और पोते का मुंह देखने को बेचैन हो उसके सपने टूटने नहीं चाहिए,ऐसा सोचते हुए हम दोनों वापस आ गए।...???

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