बात उन दिनों की है जब मेरी माता जी की तबीयत ठीक नहीं थी।उनकी दवा के लिए रेलगाड़ी से जाना पड़ता था।भाई जी नौकरी पर चलें गए थे। पिताजी ने पूछा चाचाजी जा रहे हैं क्या तुम उनके साथ जाकर मां का दवा ला सकती हो ? आने में तुम्हें लौटते समय अकेले आना होगा।
मुझे डर तो लग रहा था, लेकिन मां के दवा का सवाल था , मैंने हां कर दी।
हां तो कर दिया मैंने लेकिन रात भर मुझे नींद नहीं आई। सबेरे मां ने कहा जनेऊ रख लेना, दरअसल मेरे यहा मान्यता है शादी के बाद लड़के छः धागे की जनेऊ पहनते हैं जिसमें तीन धागे खुद के और तीन अपनी पत्नी के लिए , जनेऊ औरतों को पहनना वर्जित है। बुरी आत्मा से बचने के लिए साथ रख सकती है।
स्टेशन से मेरा घर करीब एक किलोमीटर होगा। स्टेशन से घर तक आने की कोई सवारी उन दिनों उपलब्ध नहीं हुआ करती थी। स्टेशन जाने के लिए बैलगाड़ी की सवारी करनी पड़ती जिसमें। हजारों परेशानी थी। बैलगाड़ी से जाओ तो बैल और गाड़ीवान दोनों का समय लग जाता, इसलिए अक्सर लोग पैदल ही चले जाते थे।
इधर से जाने में तो चाचाजी थे। दवा लेकर लौटते वक्त में अकेली थी। लोकल ट्रेन में टिकट भी गाड़ी आने के कुछ देर पहले मिलती है। मुझे भूख भी लग रही थी, पर इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि जाकर कुछ खा लूं सोचा घर जाकर ही खाएंगे। गाड़ी आई तो मैं उसमें चढ़ गई, मन में थोड़ी खुशी जरुर थी, आज जिन्दगी में पहली बार खुद से टिकट लेकर गाड़ी पकड़ी थी। न जाने मेरे जैसे लोग यानि कि डरपोक लोग इस दुनिया में अकेले कैसे आते हैं। लोकल ट्रेन रूटती भी बहुत कम समय के लिए। मेरे पास कोई सामान तो था नहीं आराम से उतर गई।
अब यहां से मुझे एक किलोमीटर का सफर अकेले तय करनी थी। मई का महीना था, लूं वालीं हवा चल रही थी। भूख से पेट में चूहे कूद रहे थे। कच्ची सड़क छोड़ कर यदि खुरपैरिया यानि खेत से होकर जाऊं तो दूरी बहुत ही कम हो जाती है,यह सोचकर मैंने खेत होकर जाने का निर्णय लिया। मैं चल रही थी, गर्म हवा अकेली मै और रास्ते में वह भूतहा पीपल का विशालकाय वृक्ष जिसके हजारों किस्से सुन रखें थे, मैं धीरे-धीरे उसके करीब होते जा रही थी कि एकाए
मुझे डर तो लग रहा था, लेकिन मां के दवा का सवाल था , मैंने हां कर दी।
हां तो कर दिया मैंने लेकिन रात भर मुझे नींद नहीं आई। सबेरे मां ने कहा जनेऊ रख लेना, दरअसल मेरे यहा मान्यता है शादी के बाद लड़के छः धागे की जनेऊ पहनते हैं जिसमें तीन धागे खुद के और तीन अपनी पत्नी के लिए , जनेऊ औरतों को पहनना वर्जित है। बुरी आत्मा से बचने के लिए साथ रख सकती है।
स्टेशन से मेरा घर करीब एक किलोमीटर होगा। स्टेशन से घर तक आने की कोई सवारी उन दिनों उपलब्ध नहीं हुआ करती थी। स्टेशन जाने के लिए बैलगाड़ी की सवारी करनी पड़ती जिसमें। हजारों परेशानी थी। बैलगाड़ी से जाओ तो बैल और गाड़ीवान दोनों का समय लग जाता, इसलिए अक्सर लोग पैदल ही चले जाते थे।
इधर से जाने में तो चाचाजी थे। दवा लेकर लौटते वक्त में अकेली थी। लोकल ट्रेन में टिकट भी गाड़ी आने के कुछ देर पहले मिलती है। मुझे भूख भी लग रही थी, पर इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि जाकर कुछ खा लूं सोचा घर जाकर ही खाएंगे। गाड़ी आई तो मैं उसमें चढ़ गई, मन में थोड़ी खुशी जरुर थी, आज जिन्दगी में पहली बार खुद से टिकट लेकर गाड़ी पकड़ी थी। न जाने मेरे जैसे लोग यानि कि डरपोक लोग इस दुनिया में अकेले कैसे आते हैं। लोकल ट्रेन रूटती भी बहुत कम समय के लिए। मेरे पास कोई सामान तो था नहीं आराम से उतर गई।
अब यहां से मुझे एक किलोमीटर का सफर अकेले तय करनी थी। मई का महीना था, लूं वालीं हवा चल रही थी। भूख से पेट में चूहे कूद रहे थे। कच्ची सड़क छोड़ कर यदि खुरपैरिया यानि खेत से होकर जाऊं तो दूरी बहुत ही कम हो जाती है,यह सोचकर मैंने खेत होकर जाने का निर्णय लिया। मैं चल रही थी, गर्म हवा अकेली मै और रास्ते में वह भूतहा पीपल का विशालकाय वृक्ष जिसके हजारों किस्से सुन रखें थे, मैं धीरे-धीरे उसके करीब होते जा रही थी कि एकाए
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