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भूतहा पीपल-२

एकाएक डर ने मेरी ऐसी हालत कर दी पैर आगे बढ़ने को तैयार नहीं थे, दिल सुपर फास्ट की तरह धड़क रहा था। सोचने की शक्ति समाप्त हो चुकी थी। कहीं दूर -दूर तक इन्सान क्या कोई परिंदे भी नजर नहीं आ रहे थे।अपने पैरों की आहट भी हवा की सांय-सांय में दब गई थी।भूख प्यास भी भूल गईं। घबराहट में किसी तरह पैरों को खींच कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी, इतने में पेड़ से एक लाल रंग का कपड़ा गिरकर मेरे पैरों से लिपट गया। जब आदमी अपने को मौत के समीप पाता है तो उसमें एक अजीब सी शक्ति आ जाती है,इस शक्ति को आप ईश्वरीय शक्ति भी कह सकते क्योंकि चाहकर भी इन्सान साधारण अवस्था में इतनी तेज नहीं चल सकता जितना मुसीबत में अपने को देखकर भागता है। कपड़े को पैर से झटका देकर मैं दौड़ पड़ी। मुझे यह बहुत बाद में महसूस हुआ कपड़े झटकने के क्रम में मेरे चप्पल भी वही छूट गए थे।
मैं अभी कुछ दूरी ही तय की मुझे ऐसा लगा जैसे किसी के पैरों की आहट आ रही है। पीछे मुड़कर देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता है मुझे ऐसा लग रहा था तथाकथित भूत मेरे पीछे आ रहा है। मैं उसी रफ्तार से भागी जा रही थी, इतने में कान में आवाज आई-- बुचिया रूक ! आवाज कुछ जानी पहचानी सी थी, पीछे मुड़कर देखा तो सुन्दर चरवाहा।सुंदर उस कहावत को चरितार्थ करता था आंख के अंधे नाम नयनसुख। मैं सोचती हूं जरूर उसका नाम उसकी मां ने रखा होगा,हर मां को अपना बच्चा सुन्दर ही दिखाई देता है।म मैंने अपनी रफ़्तार कम की सुन्दर ने आते ही सवालों की झड़ी लगा दी।
रउआ रूकली काहे न? मालिक (मेरे पिता) कहलथीन जे दुबजिया टरेन से बुचिया अबईछई असटेसन से ले अईअहु। हम खाक हरबरऐले भाग क अगली। पुरा असटेसन रउरा के ढुड़ली जखन रउरा रहिती तब न मिलती।रउरा जखन असगरिए रहलौ तब किए सरकार से न अइली, ई भूतही पीपल दीने किए अईली? सुन्दर के प्रश्न खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहें थे, मेरे मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकल रही थी।उपर से उसने फिर से 👻 पीपल का नाम ले लिया था। मैं इशारे से उसे अपने पैर दिखाए जो खाली थे।वह समझ गया बोला- अरे हमें त उ चप्पल देखली र त हम कईसे जनतौ जे अहईक चप्पल छूईट गेल ह।यह कहते हुए वह अपना तौलिया कंधे से उतार कर जमीन पर बिछाते हुए बोला अहा बईसू हमे चप्पल ले के आबी रहलौ है।
घर पहुंच कर खाना खाकर जब दिल दिमाग होश में आया तो मैं सोच रही थी,पीपल पर कोई 👻 तो था नहीं, कपड़े भी इंसानों ने ही लगाए थे (मन्नते मांगते है) तो फिर मुझे डर क्यो लगा, हम जो कुछ भी सुनते हैं,बार-बार सुनते हैं तो हमारे अंदर उस पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं रह जाता।
वैसे सच कहूं आज भी मैं 👻 से इतना डरती हूं कि भूत नहीं होता नहीं कहूंगी। हां 👻 होते हैं कुछ अच्छे कुछ बुरे 👻

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