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चाची की चुड़ियां भाग-२

मैं विद्यालय से लौटी नहीं की खुशखबरी मेरा इंतजार कर रही थी। मां ने बुलाकर सुनाया चाची की चप्पल तो चुड़ी के दुकान में ही छूट गई। तुम स्कूल से वापस लौटते समय लेती आना। सच कहूं मेरे मन में आ रहा था कह दूं छोड़ी है तो खुद जाकर लाए मैं क्यो जाऊं? मां पर भी गुस्सा आ रहा था,क्या जरूरत थी इन्हें चप्पल पहन वाने की ?
कह तो कुछ नहीं पाई। अपने कमरे में आकर रोने का जी कर रहा था।स्कूल से लौटते वक्त तो मेरी चारों सहेलियां होगी, उन सबों को पता चल जाएगा कैसी फूहर है मेरी चाची।उन सबों के बीच क्या इज्जत रह जाएगी मेरी। मैं उस उम्र में चल रही थी जब इन्सान अपने को सबसे ऊंचा दिखाने की कोशिश करता है। टीन एजर्स अपने को सबसे ज्यादा समझदार मानते हैं, इस उम्र में सारी दुनिया बेबकूफ लगती हैं। मैंने सोते समय कुछ प्लान बनाया।
चाची जब आती थी तो मेरी मां के साथ ही सोती थी। सोने से पहले चाची सारी चुड़िया मां को दिखाने के लिए लाई (यहीं एक वह समय होता था, जब वह घर के कामों से फरवरी होती थी ) चाची ने मेरी मां के लिए भी चुड़ी ली थी, उन्हें देते हुए बोली -- अटकार के देखा त ठीक होईछओ न। छोट -बर होतई त बदल देतौ। बड़ नीक लड़िका हई, भगवान जानें कहां से ओतना रुप देलथीन ह। जईसन देखें मे ओइसने सोभावो मुस्कराते रहइछई। एकदम गोर धपाधप, नाट मुंह त देखवा त देखते रह जयबा। दामों कम करेला कहली त कम क देलक, बाद में एक रुपईया कम है कह क छोड़वा लेली।( मैं सोच रही थी चाची कितना चालाकी से उसका मुंह पकड़ कर जो पैसे छुड़ाए थे, पचा गई ) चाची ने असलम की सारी जानकारी मां को सुनाई, उसका नाम क्या है? कितना भाई बहन हैं वह ? मुझे उनकी बातों में आनंद नहीं आ रहा था, कारण मुझे कल वहां से उनके चप्पल लाने थे।
मेरी प्रिसपल बड़ी सख्त किस्म की महिला थी, लेकिन हमें कुछ खास दिनों में रियायत दे दी जाती थी। मेरे पास बस एक यही रास्ता था, मैंने बहाना बनाकर छुट्टी ले ली। मैं अकेली दुकान में पहुंची। मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी असलम के अब्बू हो दुकान में, ताकि मैं शर्मिंदगी से बच जाऊं। दुकान पर जाकर देखा तो असलम हाजिर। मैं अभी कुछ बोलीं भी नहीं ( वह जानता था मैं बोलती नहीं हूं )  पेपर में लपेटा चप्पल मेरी ओर बढ़ाया। मैं चप्पल लेकर आगे बढ़ने ही वाली थी कि आवाज आई- अरे तुम यहां कैसे ? क्या छुट्टी हो गई ? आवाज देने वाली महिला मेरी सहेली रीता की मां थी। घबराहट में मैंने उन्हें नमस्ते भी नहीं कहा। नहीं छुट्टी नहीं हुई है कहते हुए मैं नीचे उतरने ही वाली थी कि असलम को मुस्कराते हुए देखा। हो सकता है वह आदतन मुस्करा रहा हो, या फिर फाॅरमेलटी में लेकिन मुझे उसका मुस्कुराना नागवार गुजरा, लगा जैसे वह व्यगं से मुस्करा रहा है।
रास्ते में आते हुए मैं सोच रही थी अब कभी इसके दुकान पर नहीं आनी है। एक चिन्ता मुझे और हो रही थी मैं अपनी सहेलियों को क्या ज़बाब दूंगी, क्यो मैं झूठ बोलकर अकेली गई । मुझे जब कुछ समझ नहीं आया तो सोची देखते हैं कल क्या होता है। इस तरह इतनी परेशानी उठाकर मैं चाची की चप्पल वापस लाई।
आज मेरे विद्यालय पहुंचते मेरी सहेलियों ने मुझे घेर लिया, प्रश्न साधारण था-- असलम ने पैकेट में क्या दिया ? जबाब आसान नहीं था क्या था पैकेट में ???

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