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श्री अटल जी

बहुत पुन्य बटोरती है धरा तो अटल सा संतान पाती है।
पाकर जिसको मन ही मन खुद भाग्य पर इठलाती है।

हार नहीं मानूगा रार नया ठानूगा कहनेवाला अटल ।
राजनीति को नैतिकता का पाठ सीखाकर चला गया ।

तुझे खोकर धरती बहुत रोई हर आखों में देखो अब आसू है।
फिर लौटकर आना भारतभूमी पर भारत को तेरी जरूरत है।

जाना था अगर तो चले जाते इन भटके हुए हुक्मरानो को ।
अर्थी पर जाने से पहले इनको जीवन का अर्थ बता जाते ।

क्या लिखू आपके बारे में है लेखनी हमारी काप रही ।
सूरज को दीया दिखाऊ कैसे लौ है इसकी नाकाम रही।

कल आने वाली पीठी जब भी इतिहास उठाएगी ।
पढ कर तेरी आत्म कथा वह धन्य धन्य हो जाएगी।

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