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मैंने अनसुना कर दिया

प्रिसपल ने बुलाया कारण वहीं जो अक्सर सरकारी विद्यालयों में होता है शिक्षक की कमी। अॉफिस में जाने पर मेरे सामने प्रस्ताव आया। क्या आप बारहवीं कक्षा में पर्यावरप्र विज्ञान पढ़ा सकती है। मैं नौवीं दसवीं कक्षा में हिन्दी और विज्ञान पढ़ाती थी। नियमतह मुझे बारहवीं कक्षा में पढ़ाने नहीं थे। बारहवीं में पढ़ाने के लिए M A की डिग्री होनी चाहिए लेकिन मैं BA थी, इसलिए मेरे अनुमति के वगैर मुझे पढ़ाने को नहीं कहा जा सकता था।
मुझे थोड़ी हिचकिचाहट हुई लेकिन मैंने आदतन चाईलेन्ज स्वीकार किया और हामी भर दी। बारहवीं कक्षा के छात्र वह भी सरकारी विद्यालयों के। बड़े बड़े दिग्गज शिक्षकों को या यों कहें प्रिसपल को भी कुछ नहीं समझते थे। बच्चें वहीं थे जिन्होंने मुझसे पढ़ रखें थे, पिछले क्लास में। हां कुछ नए थे जो ग्यारहवी में दूसरे विद्यालय से आए थे।अपने विद्यालय के छात्रों में मैं प्रिय शिक्षिका के रुप में थी, मुझे चिंता थी जो दूसरे जगहों से आए थे।
पहली दिन मैं वर्ग में पहुंची मुझे देखते सब उछल पड़े मैम आप पढ़ाएगी। मैंने सोचा समय ठीक है अभी पता किया जा सकता है। मैंने पूछा पहले तुमलोग खड़े होकर बताओं किस किस की पिटाई हो हुई है मेरे से,इतना सुनते ही बहुत बच्चें खड़े हो गए। वैसे लोग भी खड़े हो जाए जो मुझसे पढ़ें तो है लेकिन पिटाई से बच गए।अब मात्र पांच बैठे थे यानि यह दूसरे विद्यालय से आए थे। आज मैं पढ़ाई कुछ नहीं।सबका परिचय दिया या फिर कहो डराया। इन्सान जब खुद डरा होता है तो दूसरे को धमकाता बहुत है। मैं भी शायद वहीं कर रही थी। मैंने कहा अब आप सब बड़े हो गए हो शायद पिटाने में अच्छा न लगे। आप लोगों की बहुत चर्चा है, आपमें से कुछ का तो मुझे नाम भी याद है। आज आप मुझे देखते खुश हो रहें, पर याद रहे मैं बदली नहीं वहीं हूं। 
एक आवाज आई मैम आपने हमारे भले के लिए ही तो सज़ा दी। आपको हमसे कोई शिकायत नहीं होगी।
कल से जैसा कहा था वैसा ही व्यवहार देखने को मिला। मैं जाती सब चुपचाप पढ़ते। मुझे भी अपने आप पर गर्व होता देखा कैसे क्वलीफिकेशन की कमी के वावजूद मैंने सबको अच्छे से टेकल कर लिया।अपना पीठ खुद थपथपाने की इणइ होती थी। 
हमारी शिक्षा प्रणाली भी अजीब है। जो पढ़ाया जाता उसमें से पांच प्रतिशत भी जिन्दगी में काम नहीं आता। जो काम आए उसे अतिरिक्त विषय में रखा जाता है। मैं सोचती हूं मेरे यहां ही क्यो पूरे संसार में प्रर्यावरण की पढ़ाई की कितनी आवश्यकता है। हमारे यहां इसे अतिरिक्त विषय में रखा हुआ है। कुछ बच्चे मैं प्रर्यावरण विज्ञान पढ़ाती हूं सुनकर अपने अतिरिक्त विषय प्रिसपल से बदलवाने का आवेदन किए जिससे मेरी बच्चों के बीच लोकप्रियता का पता प्रिसपल को भी चल गया। मैं तो मन ही मन खुशी से नाच उठीं। 
ऐसे ही सबकुछ चलता रहता तो आज मुझे लिखने जैसा कुछ नहीं रहता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 
नई नई मोबाइल का जमाना आया था। विद्यालय में मोबाइल लाने पर पाबंदी थी। बच्चें पाबंदी मानते कहां है, मुझे लगा फ्लैश मेरे चेहरे पर आया, दूबारे फिर फ्लैश। अब मैं भड़की कौन है , मोबाइल लेकर आया है, पता नहीं मोबाइल नहीं लाने है। मैंने अपनी आवाज कड़ी करके बोली थी क्योंकि मुझे अंदाजा हो गया था फ्लैश मेरे उपर ही किया है। सोचा डर जाएगा लेकिन यह  क्या एक लड़का वाजावता खड़ा  होकर बोला मैम आज लेकर आया हूं कल से नहीं लाऊंगा, आपकी तस्वीर लेनी थी स्क्रिन पर लगाऊंगा। मेरे समझ में नहीं आ रहा था करता बोलूं, कुछ क्षण के लिए सब शांत हो गए । मैं भी तो कुछ पल अवाक होकर देखती रही फिर एकाएक बोल पड़ी क्या किसी को मेरी तस्वीर दिखाकर डरानी है। क्या इतनी भयानक हूं मैं ???
कुछ दिनों बाद.....

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