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मैंने अनसुना कर दिया

अक्सर ऐसा होता है आप गलती पर नहीं होते लेकिन गलत समझ लिया जाता है। मेरे साथ बहुतों बार ऐसा होता रहता है। कभी-कभी तो बहुत दर्द भी होता है, फिर अपने किस्मत को दोष देकर हम अपने को समझा लेते हैं।
प्रिसपल साहब की नोटिस आईं जिस बच्चे के पास मोबाइल मिले अॉफिस में जमा कर दिया जाए। गार्जियन के आने पर वापस की जाएगी। फिर क्या था देखते ही देखते पन्द्रह बीस मोबाइल जमा हो गए।
मेरी शुरु से आदत रही किसी के पास अपनी शिकायतों को नहीं ले जाती। मैंने मोबाइल से पिक्चर लेने की बात अपने तक ही रखी। वैसे मैंने जब पता किया तो पता चला जिसने तस्वीर निकाली थी, वह इस विद्यालय में नया आया था। जब मुझे पता लगा यह अपने वर्ग में फस्ट आता है। मेरे विद्यालय ने  हजारों इंजिनियर , डाक्टर बनाए तो सैकड़ों गुन्ड मवाली, क्रिमिनल भी तैयार किए, ढेरों छोटे मोटे नेता भी देश को दिया है हमारे विद्यालय ने। वो कहते है ना पुत्र के पैर पालने में नजरन आ जाते हैं। शिक्षको की पारखी नज़र पकड़ लेती कौन कैसा बच्चा है। जो पढ़ने में अच्छे हो उनकी छोड़ें जो पढ़ाई में फिसड्डी हो वह शिक्षकों का सम्मान करने में आगे ही रहते हैं। आज भी जो सम्मान समाज में शिक्षको को मिलता किसी और पेशे में शायद ही हासिल हो।
मोबाइल जब्त होने का नतीजा यह हुआ बच्चों में इस बात की चर्चा चली मैम ने शिकायत की है। कुछ नेता टाईप लड़कों ने प्रिसपल को सबक सिखाने के लिए बाकि को उकसाया। भीड़ की अपनी मनोवृत्ति होती, समाज में रहने पर अक्सर न चाहते थे हुए भी आपको शामिल होना पड़ता है। नेता टाईप बच्चों के डर से सभी अपने अपने वर्ग से बाहर आ गए। बच्चों की आवाज़ अॉफिस और स्टाफ रुम तक पहुंच रहीं थीं। जितने भी मेल फिमेल शिक्षक थे कोई भी उपर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। आश्चर्य की बात मेरे लिए थी प्रिसपल साहब जो छह फ़ीट के तगड़े इन्सान थे ,वह भी अॉफिस में दूबके पड़े थे। प्रिसपल जो तीस स्टाफ को अपनी ऊंगली पर नचाते थे उन्हें इतना बेबस मैंने कभी नहीं देखा था।
जब कोई आगे नहीं बढ़ा, घंटी लगे पन्द्रह मिनट से ज्यादा हो गया, सब स्टाफ रूम में बैठे थे। मैंने सोचा चलकर देखते हैं मैं जैसे ही सीढ़ी पर आईं बच्चों में खलबली सी मच गई, मैम आप गई। मैंने उपर पहुंच कर पूछा क्या बात है? मैम आपकी हम बच्चे बहुत इज्जत करते हैं। हम प्रिसपल को सबक सिखाना चाहते है। मैंने पूछा तुमलोगो को पता है मोबाइल नहीं लानी है फिर क्यो लेकर आए?
सवाल मोबाइल का नहीं है मैम दादागिरी करते हैं, कल प्ले ग्राउंड में पहुंच गए खेल बन्द करा दिया। अपने को हीरो समझते हैं। अपनी घंटी में पढ़ाने आते नहीं, अगर आ गए तो दस मिनट में चल देते हैं। क्लास में खैनी कैसे थूकेंगे पीछे से आवाज़ आई। सब अपनी अपनी सुना रहे थे। जब आप किसी को गुस्से में देखते हैं तो आप कुछ न करें आप चुपचाप उसकी बातें सुन ले, आधा गुस्सा वैसे ही समाप्त हो जाएगा। मैं चुपचाप सुनती रही, फिर पूछा तो अब क्या ? मैम आज तो प्रिसपल की धुनाई करनी है, साला निकले अॉफिस से।
मैंने पूछा फिर ? कोई जवाब नहीं आया।
मेरी हिम्मत बढ़ी ( सच्चाई यह है मैं भी डेढ़ सौ लड़कों के भीड़ में अपने को कमफ्रटेबल नहीं महसूस कर रही थी, भीड़ का कोई नियम नहीं होता , भीड़ में खड़ा इन्सान कुछ भी कर सकता)
मैंने कहा प्रिसपल साहब को पीट देना कोई बड़ी बात नहीं, तुम सबको मैं अपना बच्चा समझती हूं, इसलिए कहती हूं अपने अपने वर्ग में चले जाओ। तुम्हारे मोबाइल वापस मैं लाकर देती हूं। बस वादा करो कल से मोबाइल लेकर नहीं आओगे। याद है जो कहा था भीड़ ने मैम वादा कि क्या बात है,आप जानती है हम सभी पूरे विद्यालय में सबसे ज्यादा आपकी इज्जत करते हैं। मेरी तो आदर्श है आप, मैंने आपकी तस्वीर अपने स्क्रिन पर लगा रखी है।

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