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क्षणिकाएं

मैंने पढ़ा उसको जो था कोरा कागज़ था ।
पूरी किताब पढ़कर तू समझ नहीं पाया ।

हालत मेरी ऐसी है तू ख़ाक समझ लेगा ।
जज्वात मेरे दिल की तू समझ नहीं पाया।

हंसती सी आंखों ने कितने दर्द सहे होंगे ।
दिल को खामोशी से टूटता हुआ देखें होगे।

अपनी ही मस्ती के तुम खुद ही दिवाने हो।
रूठे हो मेरी तस्वीरों से शिकायत करते हो। 

 उलझन है क्या दिल की, कैसे समझाऊं मैं।
तू पास में रहकर भी,क्यो दूर सा दिखता है । 

सूकून की बात क्या करें, मैं तुम से रूठूं तो ।
दिल बगावत कर मुझसे, तुमको याद करता है ।

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