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मुहब्बत

वैसे तो यह कहानी जैसी लगती है लेकिन यह सत्य है। मेरे गांव में एक पंडित जी थे। वह बहुत धनी-मानी थे। उनके दादा --परदादा भले घर -घर जाकर पूजा करवाते हो, लेकिन पंडित जी अपने खेती-बाड़ी से ही खुश थे। परिवार भी छोटा था, हम दो हमारे दो यानि एक बेटा और एक बेटी।बेटी बेहद खूबसूरत थी। पुरूषों की क्या बात औरतें भी उसे देखते रह जाती थी। बेटा शहर में पढ़ाई कर रहा था।
हम लोग शहर में रहते छुट्टी में घर जाते थे। पिताजी वकालत करते थे, गांव वालों के मुकदमे मुफ्त में देखते साथ में हर आने-जाने वालों का खाने सोने का इंतजाम भी करते थे। मां को सबके खाने बनाने पड़ते। कभी-कभी मां पिताजी पर गुस्सा भी करतीं थीं। हम बच्चे थे लगता पिताजी कितने अच्छे हैं और मां को बुरा समझते थे। हमें लगता मां खाना बनाने के लिए पिता जी पर गुस्सा करतीं हैं, इतनी समझ कहा थीं हमें कि आखिर वह भी इन्सान है दिन भर क्या दस बजे रात तक हम छः भाई बहन के लिए यानि आठ लोगों का खाना नाश्ता बनाने में लग जाता था। गाव से लोगों का आना जाना लगा ही रहता था। कभी कोई तो कभी कोई।
इधर पंडित जी ने आने लगें। शुरु में हम सभी भाई बहन से छुपाया जाता था। बाद में मेरी बड़ी बहन समझ गई और उन्होंने ही हमें बताया कि पडिपं जी की बेटी जिसकी शादी हो गई थी गवना ( शादी के बाद लड़का चला जाता था लड़की अपने मैके में रह जाती थी, दो-तीन साल बाद एक रश्म होता था जिसमें ससुराल वाले फिर लड़के के साथ आते और लड़की को विदा कराकर लें जाते थे ) नहीं हुआ था, पंडित जी के मैनेजर के बेटे के साथ भाग गई थी। पंडित जी केश करना चाहते थे सो मेरे पिता जी के पास आते थे। पिताजी उन्हें समझाकर थक गए थे वो मानने को तैयार नहीं थे। अंत में मैनेजर और उसके लड़के पर मुकदमा दायर कर दिया गया। पंडित जी ने कहा वह जाएगा कहां ? कब्र में होगा तो भी निकाल लेंगे।....

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