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क्षणिकाएं

आदमी झूठ भी बोले तो कुछ इस तरह बोले।
भाषा की लजाकत हो खूबसूरत अंदाजे बयां हो।

इस दौड़ में किसी को फुर्सत कहां औरों की सुनने की।
जिसे सुनाने जाओ बहरा होने का बहाना ठोक दैता है।

हुनर हो बेचने का तो चाहे माल जैसा हो ।
शहीदों के कफ़न हो या वतन हो बेच देता है।

वह है ऐसा सौदागर आवाम को ख़बर भी न हो।
हुनर हो बेचने का जिसमें ,वतन को बेच देता है।

बुलंद करते रहो खिलाफत की आवाज वरना।
हुकुमत की खुशामद तुमको होगा उम्रभर करना।

भय, इर्ष्या,लालच हो कि हों आवारगी अपनी।
ऐ तेरा निठल्लापन एक दिन तुमसे तेरा देश ले लेगी।

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