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मुहब्बत भाग--२

चाची जी घर से आई थी वरना हमें पता ही नहीं चलता कि पंडित जी ने जो कहा था कर दिखाया। उन्होंने उनदोनो को खोज निकाला था। मेरी मां ने इशारे में चाची से कहा भी जब बच्चे विद्यालय चलें जाए तब बात करेंगे अभी बहुत काम है। औरतों में बस एक ही कमी होती है वह ज्यादा देर तक बातें छूपा नहीं सकती। हमारे विद्यालय जाने पर जो बातें हुई होगी उससे तो मैं अनजान हूं लेकिन इतना उनकी बातों से ज्ञात हो गया कि दोनों ने शादी कर ली थी। लड़की के वापस आने पर उसके माथे का सिन्दूर धोया गया,इस शुभ कार्य को पंडिताइन ने अंजाम दिया।
दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो पंडित जी अपनी बिटिया के साथ हाजिर थे। प्रणाम कर मैं अंदर पिता जी को ख़बर देने गई। पिताजी के आने पर लड़की पैर छुए फिर पिताजी के कहने पर सिर नीचा किए बैठी रही।
मुझे याद है पिताजी जब बैठक में अपने मुक्विल के साथ होते थे, तब किवार उठगां दिया जाता था। संयोगवश मां आज नहीं थी। पड़ोसी के घर पूजा में गईं थीं।
हम तीनों बहनें किवार से लग कर खड़े थे। बच्चों का मन निश्चल होता है,हम ह उत्सुकता थी कि क्या बोलेगी सुनने की।
पिताजी ने नाम पूछा, फिर पिता का नाम, फिर उस लड़के का नाम ?
लड़की चुप थी, पंडित जी ने कहा जो पूछा जाता है बताओ। कचहरी में इजलाश में भी यह  पूछा जाएगा।
पिताजी ने फिर से वहीं सवाल किया, वह फिर चुप रही। पंडित जी ने थोड़े कड़े लहजे में डांटते हुए कहा बोलती क्यो नही बोलों।वह फिर भी चुप ( हमें भी उत्सुकता हो रही थी नाम जानने की ) ।
पिताजी ने फिर से सवाल किया जो तुमको पकड़ कर जबरदस्ती ले गया उस लड़के का नाम क्या था ? वह फिर भी चुप रही लग रहा था वह नहीं बोलेगी।
पंडित जी की आवाज़ थोड़ी बदली सी लगी, कुमुद ऐसे चुप रहोगी तो वकील साहब को कचहरी जाने में लेट हो जाएगी।
पिताजी ने फिर एक बार कोशिश की कुमुद जो लड़का तुमको छूड़ा दिखाकर धमकाकर ले गया उसका नाम क्या था ?
लड़की को चुप देख पंडित जी का पारा गरम हुआ, अरे बोलो बोलती क्यो नही?
पिताजी बोले बोलतौ केना भतार रहलईन ह। ऐसा शब्द सुनते वह एकाएक बोल पड़ी- कैलाश।
हमने सोचा चलों बोली तो । पिताजी ने पंडित जी को फिर समझाने की कोशिश करते दिखे, अभी भी समय है केश वापस ले लीजिए, अगर कचहरी में इसने सही तरह से जो नहीं बोला तो मुसीबत हो जायेगी। पंडित जी कहां मानने वाले थे। कहां- कुमुद जो सिखाया जाएगा वहीं बोलना होगा वहां समझी। एकबार कह दो बोलोगी ताकि वकील साहब को हिम्मत हो जाए। वह मुंह से बोली तो नहीं लेकिन सहमति में सिर हिला दिया।
हम किवार के इस पार से देख तो नहीं सकते थे, पिताजी के कहने से अंदाजा लगाया। पिताजी बोले हां तो ठीक है याद रहे तुमको यही कहना है कैलाश डरा धमकाकर छूरा दिखाकर ले गया।
इतने में घर के पीछे की कुन्डी खटखटाई यानि मां पूजा से लौट आई। हम सभी बहनें किवार से दूर भाग खड़े हुए। आगे उसे और क्या सब कहने को सिखाया गया नहीं मालूम।
 एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी पिताजी और झूठ , मेरे आदर्श तो मेरे पिताजी ही थे। यह उम्र नहीं थी कि सोच सकूं यह उनका पेशा है, अपने मुक्विल को बचाना चाहे इसमें झूठ का ही साथ क्यो न देंना पड़े। सच कहूं तभी से मुझे झूठ और झूठ बोलने वालों से नफ़रत हों गई। पहली बार हां पहली बार मुझे ऐसा लगा मेरी मां पिताजी से अच्छी है। हमेशा सच बोलती है। .....

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