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मेरी भाषा असमर्थ है

चले थे जब सफ़र में तेरे सिवा कोई न था।
कारवां बढ़ता गया खोजा तुझे तो तू न था।

दोस्ती के लिए दिन महीने साल नहीं होते।
बंधन कोई भी हो हम कभी आजाद नहीं होते।

बांधों न कोई बंधन में दोस्ती को तुम सुन लो।
बंधन से भय,लालच,ईर्ष्या, अभिमान आती है।

दोस्ती लम्बी हो या छोटी हो तो कोई फर्क नहीं है।
फ़सल लम्बे हो दाना विहीन हो अच्छा तो नहीं है।

दोस्ती और रिश्तों में बस फर्क है इतना ।
एक बंधन है सुन लो एक बंधन विहीन है।

दोस्ती तब तक ही दोस्ती कहलाने के काबिल है।
जब तक अपना हीत से पहले दोस्त का हीत हैं।

दोस्ती के बारे में कुछ कहूं तो कहूं कैसे ?
दोस्ती की गहराई मापने में मेरी भाषा असमर्थ है।

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