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मुहब्बत भाग-३

शुरु हुआ मुकदमे,बहस का दौड़। पंडित जी अपनी बिटिया के साथ आते। विपक्ष के वकील क्या प्रश्न कर सकता है, उसके जबाब क्या देने हैं सिखाया जाता। मुकदमे में पंडित जी की जीत हुई।कोर्ट में कुमुद ने वही कहा जो उसे सिखाया गया यानि छूरे की नोक पर उसका अपहरण किया कैलाश ने। कानून का फैसला सबूत और गवाह पर निर्भर करता है। कैलाश गुनहगार साबित हुआ, उसे सजा हो गई, पंडित जी को खुशी हुई बदला लेकर।
पंडित जी के सामने अब समस्या खड़ी हुई बेटी के ससुराल भेजने की। गवना की रश्मो में लड़के पक्ष से तिथि भेजी जाती है, पंडित जी चाहते थे जल्दी लड़की ससुराल चली जाए, अपने एक रिश्तेदार के द्वारा खबर भेजवाया गया लड़की की मां अस्वस्थ रहती है चाहती है बेटी का गवना देख ले।
ऐसा सुनकर ससुराल वाले गवना का दिन भेज दिए। पंडित जी के खुशी का ठिकाना नहीं था। गवना की तैयारी में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए। कपड़े- गहने खरीदने के लिए पंडित जी कुमुद को लेकर मेरे यहां आ गए। मेरी मां उनसे ओट कर बातें करती थी। पंडित जी ने एक लिस्ट देकर कुमुद से कहा मेरी मां को दे दें। पंडिताइन की तबीयत ठीक नहीं है, बच्चिया को सब खरीदारी आपको ही करवानी पड़ेगी। एक दो दिन बाद आकर इसे ले जाएंगे।
कुमुद के आने से मेरी मां बहुत खुश थी कारण था वह मां के सब काम में हाथ बंटाती थी जो सुख हम बहनें मां को नहीं दे पाती थी। हमारे निकम्मेपन के लिए वह पिता जी को ही जिम्मेदार मानती थी,उनका मानना था पिताजी ने हम सभी बहनों को सर पर चढ़ा रखा है।
घर के सारे कामों को निबटा कर मां और कुमुद खरीदारी को चलें जातें। हम सभी बहनें अपने विद्यालय, इतनी व्यस्त रूटीन में भी मा हम पर अपनी नज़र रखतीं थी, हमें कुमुद के आने से पहले ही समझा दिया गया था कोई उस लड़की से बात नहीं करेगा,। वह तो मजबूरी है हमें पंडित जी की बात माननी पड़ी कैसे उनकी बातों को टालू ।
खरीदारी भी हो गई , कुमुद चली गई लेकिन हमने उससे एक बात भी नहीं की।
चलिए अब गांव चलते हैं,गाव अब फणीश्वर नाथ रेणु के गांव जैसा नहीं रहा। गांव की खासियत होती है सब एक - दूसरे के बारे मै जानते हैं, इससे यह कहां साबित होता एक दूसरे का भला चाहते हैं। शहर गांव से भिन्न होता है इसमें अपने उपर वाले फ्लैट में रहने वाले को भी लोग नहीं पहचानते। कुमुद के गवना का समय नजदीक आ रहा था। पंडित जी कुछ सहमे सहमे से थे, बेटी का बाप कितना भयभीत होता है जब तक बेटी की डोली विदा ना हो जाए।
पंडित जी की आशंका निर्मूल भी नहीं थी। गांव वालों के मुह कैसे बन्द कर सकते थे। दरवाज़े पर कुटुंब रहे तो नज़र रखी जा सकती है लेकिन सब नित्यक्रिया के लिए तो कोई साथ नहीं जाएगा। एक दिन निकल गया दूसरा दिन भी निकल गया। गांव वालों को भी तलाश थी कब मौका मिले शुभ चुगली की जाए । कहते हैं दिल से जो काम करना चाहो पूरा हो ही जाता है, और यह शुभ कार्य सम्पन्न किया पंडित जी के भतिजे ने। कुमुद के पति ठहरे क्रिकेट के शौकीन और पंडित जी की टेलीविजन खराब थी मौका मिला और पहुंच गए चलिए जीजा जी मेरे यहां क्रिकेट देखिए। पंडित जी ने भी कोई रोक टोक नहीं किया, करते भी क्यो वह कोई गैर नहीं अपना भतिजा था। पंडित जी को राम कथा का विभीषण भूला गया था। वहां कुमुद के पति को सारी प्रेम कहानी सुनाई गई। कहानी सुनकर वह दंग रह गया। रात हुई सब सोने गए। सबेरे दरवाजे पर कोई नहीं था सारे अतिथि बिना दुल्हन को लिए वापस जा चुके थे। पंडित जी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, पंडिताइन जो पहले ही अस्वस्थ थी बिछावन पकड़ ली।
कुछ दिनों बाद वह चल बसी।
गर्मी की छुट्टियां होते हम गांव चले जाते। आम-आदमी लीची के बगीचे में पका क्या कच्चा आम भी नमक लगाकर खा जाते थे । गर्मी में लूं भी तेज़ होती थी, मुझे लूं मार गया था। मां से मिलने कुमुद आईं थीं, मां ने उसे अंदर बुलाया और मुझे दिखाते हुए कहा देख बात नहीं सुनती लूं मार दिया है। चाची मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी थी, इसीसे आई थी छोड़िए फिर कभी आ जाउंगी। मां ने कहा बोलो क्या कहना है,यह तो सो रही है। मैं सो नहीं रही थी सोचा अगर इन्हें पता चला मैं सो नहीं रही तो बातें नहीं करेंगी। मैं आंखें बंद किए सोने का बहाना करती रही।...

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