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क्षणिकाएं

यादों के झरोखे से हर वक्त गुजरता है।
कल जो मेरा था, जाने कहां रहता है।

बीते हुए हर लम्हें हमें याद तो आते है।
लौटकर न आएंगे कह कर चला जाता है।

गैरों से क्या शिकवा अपनों को देखो तुम।
तुम खुद को खुद से ही लड़ते हुए पाओगे।

क्षणभंगुर दुनिया में ना कोई रहने आया है।
मन चंचल है क्यू मेरा मेरे समझ न आया है।

बैठो पल दो पल कुछ बातें करते हैं।
कुछ अपनी कहते है कुछ तेरी सुनते हैं।

कैसे कटी तुम बिन दिन-रात बताते है।
बीते हुए हर लम्हों की तस्वीर दिखाते हैं।

तुम्हारे इंतज़ार का था ऐसा आलम।
हसते थे न रोते थे खोय-खोय रहते थे।

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