आज आपके लिए एक फूल शेयर कर रही हूं जो मेरे पास नहीं है। केवड़ा फूल के नाम से आप परिचित होंगे।केवड के सुगंधित नहीं अतिसुगंधित फूल है।यह पैडैनेसी कुल का पौधा है। केवड़ा बहुवार्षिय पौधा है। हिंदी और संस्कृत में इसे केतकी कहते है, अंग्रेजी में स्क्रुपाईन कहते है।इसक वानस्पतिक नाम पैनडेनस आडोरैटिसिमस है।
(१) कैसे लगाएं-- इसे कटिंग से लगा सकते है।
(२) मिट्टी-- उपजाऊ दोमट, चिकनी दोमट या भूरभुरी मिट्टी चाहिए।
(३) फूल-- लगाने के तीन साल बाद फूल आते है। फूल को पूरा आकार में आने में पन्द्रह दिन लग जाते है। फूल पेड़ के शीर्ष पर आते है।इसके फूल पीले रंग के छोटे छोटे पुष्पों के समुह से बनते है। फूलों में सुगंध इन्हीं कलिकाओं से आती है।
(४) जड़-- केवरा की जड़ तने से निकल कर जमीन को जकड़ लेती है।
(५) गमले-- गमले में पानी का निकास सही रखें।
(६) खाद-- केवड़ा के पौधे को खाश खाद की जरूरत नहीं है फिर भी आप गोबर या पत्ते की खाद दें सकते हैं।
(७) तना-- इसकी तना उपर की ओर न जाकर , जमीन से थोड़ी उपर जाकर तिरछी दिशा में बढती है। इसके यने से जड़े निकल कर जमीन में चली जाती है और वहां से पौष्टिक तत्व लेती है।
(८) भूक्षरण-- केवड़ा की जड़ें तना से निकल कर जमीन को जकड़ लेती है, इस गुण के कारण इसे नदी, तालाब, खेत के किनारे लगाया जाता है।
(९)पत्ती-- केवड़ा के पत्ते से हैट,चटाई, टोकरियां, थैले और छाते बनाया जाता है।
(१०) फूल-- फूल से इत्र, अगरबत्ती, साबुन और सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
(११) केवड़ा से आंख कान की दवा बनती है। मुगलई ब्यंजन में उपयोग किया जाता है।यह शीतलता प्रदान करने के साथ शक्तिदायक भी है।
(१) कैसे लगाएं-- इसे कटिंग से लगा सकते है।
(२) मिट्टी-- उपजाऊ दोमट, चिकनी दोमट या भूरभुरी मिट्टी चाहिए।
(३) फूल-- लगाने के तीन साल बाद फूल आते है। फूल को पूरा आकार में आने में पन्द्रह दिन लग जाते है। फूल पेड़ के शीर्ष पर आते है।इसके फूल पीले रंग के छोटे छोटे पुष्पों के समुह से बनते है। फूलों में सुगंध इन्हीं कलिकाओं से आती है।
(४) जड़-- केवरा की जड़ तने से निकल कर जमीन को जकड़ लेती है।
(५) गमले-- गमले में पानी का निकास सही रखें।
(६) खाद-- केवड़ा के पौधे को खाश खाद की जरूरत नहीं है फिर भी आप गोबर या पत्ते की खाद दें सकते हैं।
(७) तना-- इसकी तना उपर की ओर न जाकर , जमीन से थोड़ी उपर जाकर तिरछी दिशा में बढती है। इसके यने से जड़े निकल कर जमीन में चली जाती है और वहां से पौष्टिक तत्व लेती है।
(८) भूक्षरण-- केवड़ा की जड़ें तना से निकल कर जमीन को जकड़ लेती है, इस गुण के कारण इसे नदी, तालाब, खेत के किनारे लगाया जाता है।
(९)पत्ती-- केवड़ा के पत्ते से हैट,चटाई, टोकरियां, थैले और छाते बनाया जाता है।
(१०) फूल-- फूल से इत्र, अगरबत्ती, साबुन और सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
(११) केवड़ा से आंख कान की दवा बनती है। मुगलई ब्यंजन में उपयोग किया जाता है।यह शीतलता प्रदान करने के साथ शक्तिदायक भी है।
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