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लघु कथा

एक राजा था उसके राज्य मे सूखा से फसल बर्बाद हो गई। प्रजा भूखे मरने लगी। दूसरे राज्य की ओर भागने लगी। राज्य मे कोई काम न था जिसे करके सब अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते।
राजा ने सोचा प्रजा को कैसे रोका जाए। उसे एक तरकीब समझ मे आई। एक महल बनवाया जाए ताकि हर हाथ को काम मिले। प्रजा की रोजी रोटी की समस्या इस तरह हल हो जाएगी। राजकोष मे धन और अनाज की कमी नही थी। जो धन राजकोष मे है वह भी तो प्रजा के मेहनत से ही कर के रूप मे आए है। ऐसा सोचकर उसने मंत्री को आदेश दिए की आप एक किला बनवाए और नगर मे ऐलान करवा दे सभी आकर काम करे। राजा के आदेश पर नगर मे ढिंढोरा पिटवा दिया गया।आप सबो को सूचित किया जाता है कि राज्य मे एक किला का निर्माण होना है। आपको अब दूसरे राज्य मे जाने की जरूरत नही है।
सबेरे सभी निर्धारित जगह पर पहुंच गए। किले का निर्माण कार्य शुरू हुआ। किले की नींव खोदी गई फिर ईट की जुड़ाई।दोपहर तक काम जोशपूर्ण चलता रहा। इधर राजा ने मंत्री को बुलाकर आदेश दिया,जो दिवाल जोड़े गए है उन्हे तोड़ दिया जाए। मंत्री को समझ मे कुछ नही आया। राजा का आदेश सर्वोच्च होता है। मंत्री ने जाकर काम करने वाले मजदूर को कहा आप सबो ने जो दिवार बनाई है उसे तोड़ना शुरू करे।हरदिन आप दोपहर तक दिवार बनाएंगे और दोपहर से शाम तक उसे तोड़कर अपने पैसे लेकर घर जाएगे। आदेश के अनुसार मजदूरो ने वैसा ही किया।प्रजा मे हलचल मच गई ,लगता है राज्य मे अकाल होने से राजा का दिमाग खराब हो गया है। प्रजा को अपने काम और तनख़्वाह से मतलब रहती है। आज भी हम वोट देकर अपने काम का जवाबदेही का समापन समझ लेते है।
इस तरह किले का काम चलता रहा।महीनो बीत गए किला नीव से उपर नही आया। जब पानी सर से उपर आ गया तो मंत्री ने विचार किया अब राजा से पूछना जरूरी है वो ऐसा क्यो कर रहे। अगर राजा साहब का दिमाग खराब हो गया है तो वैध से इलाज करवानी होगी।
मंत्री ने हिम्मत करके राजा के सामने अपना प्रश्न रखते हुए  कहा- हुजूर यह आप क्या कर रहे है। प्रजा मे चर्चा है राजा साहब पागल हो गए है,भला ऐसा कौन करता है। ऐसे तो पूरा खजाना खत्म हो जाएगा और किला कभी पूरा नही होगा।
राजा ने ध्यान से सारी बाते सुनी। उन्होने मुस्कराते हुए जबाब दिया- जनता अकाल से परेशान है,दूसरे राज्य मे पलायन कर रही है। राज्य राजा से नही प्रजा से होता है और राजकोष मे रखे अनाज, पैसे उनकी ही मेहनत से आए है। भूखमरी से बचाने के लिए उनका ही पैसा उनको देख रहा हू।
मंत्री जो राजा की बात गौर से सुन रहा था पूछा- हुजूर आपका कहना सही है। उनका पैसा है आप उनको देख रहे है लेकिन यह किला ???
मंत्री जी किला बनवाने और  तुड़वाने के पिछे राज्य की भलाई  छूपी हुई है। यदि पैसे वगैर मेहनत के दे दिए जाए तो सब आलसी और निकम्मे हो जाएगे। इनमे मुफ्तखोरी की आदत हो जाएगी। जिस देश की जनता मे मेहनत की रोटी खाने की आदत हो जाए वह देश का सत्यानाश हो जाता है।
राजा साहब की बाते मंत्रीजी की समझ मे आ गई ।
प्रश्न है हमारे समझ मे कब आएगी ? आएगी भी या नही ???

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