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क्षणिकाए

पुराने साल को आजाद कर लू।
शरारत उनकी सब माफ कर दू।

पत्थर जो मेरे घर तक आया।
उसकी जरा तहकीकात कर लू।

चरागो से गुजारिश है मेरा तो बस इतना है।
जो खुदा बन बैठे है उनको बेनकाब कर दे।

आगाज ऐसा है तो फिर अंजाम क्या होगा।
सियासत मे चरागो का आफताब क्या होगा।

बस इक इशारे पर जिनकी, ऐ दुनिया झूकती हो।
चाहे जो भी चाहत हो उनकी, सब ही हासिल हो।

कोई जीतेगा कैसे जो हार अपनी मान बैठा हो।
हार कर भी हसीन दुनिया को ठोकर मार बैठा हो।

हासिल कर पाएगा कैसे कोई ऐसे दिवाना को।
बहरे गूंगे समझ पाएंग क्या उसके अल्फाज़ो को।

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