आँखे बंद कर भले सपने देखे जाते है ।
बंदकर नही खोलकर पूरे किए जाते है।
चुनाव का मौसम हो तो मुफ्त मे मिलते है।
वरना अब तो सपने पर भी टैक्स आते है।
सपने बेचकर वो अपने सपने पूरे करने आते है।
फिर बैठकर वो कुर्सी पर सब कुछ भूल जाते है।
भोली भले हो जनता पर इनको समझती है।
पहले बेचे थे जो सपने यादे इनको दिलाती है।
खिलाते है तो खा लेती पिलाते है तो पी लेती।
ई वी एम पर पहुंच कर वो इनको छकाती
बंदकर नही खोलकर पूरे किए जाते है।
चुनाव का मौसम हो तो मुफ्त मे मिलते है।
वरना अब तो सपने पर भी टैक्स आते है।
सपने बेचकर वो अपने सपने पूरे करने आते है।
फिर बैठकर वो कुर्सी पर सब कुछ भूल जाते है।
भोली भले हो जनता पर इनको समझती है।
पहले बेचे थे जो सपने यादे इनको दिलाती है।
खिलाते है तो खा लेती पिलाते है तो पी लेती।
ई वी एम पर पहुंच कर वो इनको छकाती
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