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बहरे को सुनाने से क्या फायदा

 पुरानी यादे जब तक मिटी ही न हो।
नया साल मनाने से भी क्या फायदा।

पतझर का स्वागत भी मन से करो।
बसंत तो बसंत है हमेशा रहेगा नही।

साल बदलने से भी हासिल होगा क्या।
मन तुममे जो लगा है डिगेगा नही।

तेरे जाने से घर मे जो अंधेरा हुआ।
अंधेरे मे कुछ अब दिखेगा भो नही।

ऐ जमी ऐ आसमा लो अब तुम्हारा हुआ।
दो गज जमीन भी क्या मुझे मिलेगा नही।

न आना हो तो तुम न आया करो।
यादो को रोककर एक नया मोड़ दो।

कसम तो कसम है उसकी बाते ही क्या।
जब जी मे आए लो फिर उसे तोड़ दो।

बहरो को सुनाने से है क्या फायदा।
पन्ना मोड़ो यही कलम अपनी तोड़ दो।

सोए को जगाना भले ही आसान हो।
जगे को जगाना सुनो मुमकिन नही।

बहरे गूंगे की वस्ती मे रहते हो तुम ?
लिख चुके तुम बहुत लिखना छोड़ दो।

                  (2)

अपने हाथ मे गर तुम मेरा हाथ लो।
बुझते चरागो को गर आफताब कर लो।

तेरे खत के लफ्जो मे हो कुछ तरन्नुम ऐसा।
खत से तेरे खुशनुमा मौसम की खुशबू आए।

पुराना हो गया हू जाने दो मुझे।
आऊगा फिर नया साल बनके।

हर तरफ फूल होगे, खुशबू होगी।
बहार होगी ऐ धरा खुशहाल होगी।

निमंत्रण नया को पुराने साल से भिजवा दो।
इस तरह आओ की हर गुलशन को महका दो।

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