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चाची- के- पति- की- शादी

बात उन दिनों की है जब मेरे गांव में पहले पहल चाचाजी साहब बने थे। पूरे गांव खुशी से पागल हो गया। लोगों की सोच सबसे पहले अपनो तक जाती है। सभी को ऐसा लग रहा था, अब उनके बच्चे को नौकरी में पैरवी के लिए गांव में ही साहब है तो डर कैसा ?
चाचाजी रेलवे में किसी आफिसर बन गए थे। छः फीट के, गोरे चीटे तीखे नाक नक्श वाले चाचाजी सूरत से ही साहब दिखते थे।
गांव में इतना कमाऊ और क्वारा लड़का । दूर-दूर से लड़की वाले शादी के लिए आते। कभी कभी एक साथ दो तीन भी पहुंच जाते। उन दिनों शादी में लड़की देखने का रिवाज नहीं था। हां शादी में हैसियत जरुर देखी जाती, काफी मोल भाव के बाद जो दहेज अधिक दे वहां शादी तय कर दी जाती।
राघोपुर के जमींदार साहब को सफलता मिली, उनकी बेटी चाचाजी की पत्नी बनकर आ गई। दान दहेज और खान पान ऐसा कि महीनों गांव में चर्चा होती रही। बहुत अच्छा सम्बन्ध हुआ है, कोई कहता गहने तो तौल कर दिया है लड़की को।
शादी की रस्में समाप्त हुई, भाभियों ने चाचाजी को धकेलते मज़ाक करते हुए सुहागरात के लिए सजे कमरे में पहुचा दिया। वहां पलंग पर घूंघट में दुल्हन बैठी थी। चाचा जी ने घूंघट उठाया और फिर गीरा दिया, जैसे उन्हें बिजली का झटका लगा हो। वह चुपचाप कमरे से बाहर आ गए। बाहर में घर की महिलाओं में यही बातें चल रही थी।
दरअसल चाची (दुल्हन) चार फीट की ,कोयले से अधिक काली, मोटे से नाक के साथ दो बटन जैसी आंखें। शरीर से भी ह्रस्ट पुस्ट यानि खाई पी घर की दिखाई देती थी।
चाचाजी को बाहर आते देख महिलाओं में सन्नाटा छा गया।
एक भाभी ने मजाक के लहजे में पूछा-- बबुआ दुल्हनिया पसंद आई।
चाचाजी ने रुककर ज़बाब देना शायद उचित नहीं समझा। यह कहते हुए बाहर निकल गए-- दुल्हन नहीं ताड़का है।
बस वह दिन था चाचा जी ने पलटकर नहीं देखा चाची को। नौकरी से घर आए थे चाचाजी घर में खाना खाने आते और दलान पर सोने चले जाते। सबने मिलकर सोचा क्यू न खाना परोसने लिए दुल्हन को भेजा जाए। चाचाजी के घर में आते ही सभी औरतें छुप गई। चाचाजी खाने के लिए पीढ़े पर बैठ गए। चाची खाना लाकर सामने रखी ही थी कि यह क्या हो गया। चाचाजी उठकर खड़े हो गए भोजन का थाल उठाया और जमीन पर पलटकर चलते बने।
चाचाजी रोते हुए अपने घर में चली गई।
इस तरह से दो साल निकल गए। परिवार में सभी को चिन्ता हुई । क्या किया जाए ? दूसरी शादी ? बड़ी बहु का क्या होगा ? भगवान सबको कुछ न कुछ देता है। चाची को रुप न दें सके तो मधुर आवाज के साथ प्यारा सा दिल दे दिया था। घर में सभी उसे चाहते थे, कोई भी उन्हें दुखी नहीं देखना चाहता था। किसी की हिम्मत नहीं हुई चाची से दूसरी शादी की चर्चा करने की। कहते हैं न दिवारो के भी कान होते हैं, बात चाची के कानो तक पहुंच गई।
चाची बहुत सुलझे विचारोवाली थी वह अपनी सास से बोली - अम्मा जी जब वे मुझे अपनी पत्नी मानते ही नहीं तो आप उनकी शादी फिर से करवा दें। एक बात मैं कहना चाहती हूं मुझसे छोटी बहन बहुत सुंदर है, आप पुछकर देखें अगर उससे शादी करने को तैयार हो तो मेरे माता-पिता को खबर करें।
घर में तो लगता है लोग इसी इंतजार में बैठे थे। चाचाजी को भला क्यो इनकार होता। अपनी शादी में वह अपनी साली को देख चुके थे जो अपनी बहन के विपरित सुन्दरता की खान है।
# अब समस्या थी लड़की के माता-पिता को कैसे मनाएं।
पहले तो यह सुनकर चाची के माता-पिता तैयार नहीं हुए। उन्हें समझाया गया अगर आप अपनी दूसरी बेटी से ब्याह करा देगे तो दोनों बहन एक-दूसरे का सहारा बनेगी। छोटी बहन के बच्चे अपनी मौसी को मां सा प्यार देंगे। बहुत तरह से समझा बुझाकर उनके माता-पिता को तैयार कर लिया गया।
शायद चाची को छोड़कर कोई दूसरी औरत होती तो शादी में शरीक नहीं होती लेकिन चाची अपने पति के साथ बहन की शादी में शामिल हुई।
सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा। चाची को किसी से कोई शिकवा शिकायत नहीं। पूरे गांव में सबकी चहेती बन गई चाची जो अपने पति से उपेक्षित थी। समय बीतता रहा। दस साल निकल गए चाचा जी को दो संतान प्राप्ति हुई एक लड़का एक लड़की। भाग्य ने फिर पलटी मारी, लड़की के जन्म के समय उनकी पत्नी चल बसी।
अब बड़ी चाची ही मां बनकर दोनों बच्चों को पाल रही थी। न जाने चाचा जी को फिर से शादी का फितूर कैसे सवार हो गया।
इसबार गांव वालों ने बहुत समझाया- अब तुम पैंतालीस के हो रहे हो, तुम्हें बैटा बैटी दोनों हे। बीबी भी है जो बच्चों को मां की कमी महसूस नहीं होने देगी । फिर शादी करने का कोई मतलब नही है। यह अब अपने दिमाग से निकाल दो।
कहते हैं न जब इन्सान की मत मारी जाती, उसे अपने सिवा किसी की बाते समझ में नहीं आती।
दरअसल चाचाजी ससुराल आते जाते जान गए थे कि ससुराल वाले आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, तीसरी बैटी की शादी के लिए पैसे नहीं हैं। उन्होंने ससुराल वालों के सामने अपने साथ दूसरी साली को ब्याह देने की बात रखी।
मरता क्या न करता। पैसे के अभाव में बुद्धि घास चरने चली जाती है। ससुराल वाले राजी हो गए। शादी में गांव वालों का साथ मिलना मुश्किल था । देवघर में शादी होने की बात हुई।
इधर जब से चाची को इस बात की जानकारी हुई, उनका मन अंदर ही अंदर रो रहा था। कैसा इंसान हैं ऐसे, जब मेरे से शादी हुई थी तो मुन्नी बस पांच साल की थी।  उससे शादी करेगे। जितना सोचती उतनी नफरत बढ़ती जाती।
अंत में चाची ने निर्णय लिया, मुझे ही कुछ करना होगा । उन्हे याद आया सुन रखीं थी- सरकारी कर्मचारी एक पत्नी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता। बस फिर क्या था चाची ने कोर्ट में अर्जी डाल दी- हूजूर मैं साहब की पत्नी हूं , इन्होंने मुझे तलाक नहीं दिया है और एक नाबालिग लड़की से शादी करने जा रहे हैं।
कोर्ट से समन्न आ गया, शादी का भूत सवार था उतर गया।
नौकरी यानि रोजी-रोटी बहुत बड़ी चीज होती है।  जो कुछ भी हूं इसी के बदौलत है नाम, पैसा,इज्जत नौकरी चली गई तो यह साहबियत भी चली जाएगी।ऐसा समझते वै चाची के पास आए।
आज शादी के बारह साल बाद चाचाजी ने चाची से बातें की - सुनो मुझसे गलती हो गई। मुझे मुआफ कर दो, केश वापस ले लो। मेरी नौकरी चली जाएगी। मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, तुम जो चाहो सजा दो। अब से तुम और दोनों बच्चे मेरे साथ शहर में रहोगे।
चाचा जी बोलते जा रहे थे और चाची रोती जा रही थी।

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