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तुमको मेहमान न समझूं

मेरी पहचान तुमसे है सुनकर लबों पर मुस्कान आती है।
दिल धड़कता है जोरों से जब तेरी याद आती है।

अपना प्रतीत होने दो गीतों ग़ज़लों में आने दो।
पावंदी ना लगाओ मुझको ग़ज़लें गुनगुनाने दो।

पैगामे मुहब्बत से मैं कहां इन्कार करती हूं।
हां हां हैं मुहब्बत तुमसे मैं इजहार करती हूं।

देखूं तुम्हें तो पलके मेरी झपकना भूल जाती है।
पल भर के लिए सब रंजोगम मैं भूल जाती हूं।

दिल बेबफा होकर तुम्हारे साथ हो लेता है।
जला अपना आशियाना फिर वो टूट जाता है।

मेरी खामोशी को तुम अपनी जीत मत समझो।
मेरी खामोशी में अपना चैनो सूकून छूपा समझो।

सौ बार पहल कर मुहब्बत में मैंने तुमको मनाया हैं।
एक बार आकर तुम मेरा स्वाभिमान तो रख लो।

तुम रूखशत क्या हुए पलटकर एकबार न देखा।
उस पर इल्जाम लगाते हो तुमको मेहमान न समझूं।

मेरी खता बस इतनी थी तुमसे प्यार क्यो किया?
मुहब्बत हो भी गई तो क्या? एतबार क्यो किया?


एतबार क्यो किया ?

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