Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

खुद को पाता हूं

दिल टूटा था कई बार मगर ऐसी तो हालात न थी।
कई बार खाई थी जख्म दिल में कसक दिन रात न थी।

लोग बदलते रहते थे पहले रोये थे मगर यह बात न थी।
ऐसा लगता है मै भी तुम ही थे, मेरी तो कोई औकात न थी।

पाकर तुमको खुद को खोया जिन्दगी से मुलाकात हुई।
हमने जो की थी मुहब्बत जिक्र उसकी सालों-साल हुई।

देखना था कितना बदले तुम इन बदले हुए हालातो में।
जब भी तुम्हारी याद आई तुमसे मिलने की फरियाद आई ।

ऐसा क्यों लगता है मुझको वह कुछ अलग सा ही था।
रिश्ता तो बेनामी था अपना वह शख्स तो अपना सा ही था।

न जाने कब कैसे उसके ख्यालों में गुम हो जाता हूं।
ख़ुदा की इबादत को भूल तेरे दर पर ख़ुद को पाता हूं।

रिश्ता टूटा नहीं फिर भी अब पहले जैसी भी बात नहीं।
मुहब्बत कोई हिसाब नहीं इसमें कोई फर्मुले की दरकार नहीं।

ज़िन्दगी बीत जाती है रिश्तों में मिठास लाने में।
आपको भी दर्द तो हुआ होगा इसे तोड़ कर जाने में।
तोड़कर  जाने में

Post a Comment

0 Comments