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खिदमत में रहते

हालात है कुछ ऐसा डर सा लगता है कहने में।
झोली खाली फकीरों की इस पाक महीने में।

उनसे न कोई शिकवा जिनकी झोली ही खाली है।
अमीरों से तो कोई पूछे खैरात कहां बांट आई हैं ।

फ़कीर भले है हम इतनी जूर्रत तो हम रखते हैं ।
पेट खाली भले अपना अतिथि का हम भरते हैं।

खुदा मुझे मुआफ करें खिदमत में कमी गर हो।
हम वो हैं जो फकीरों की खिदमत में ही रहते हैं।

बस एक दुआ मेरी कबूल हो जाए पाक महीने में।
ना रहे कोई नंगा भूखा नाहीं कोई रहे फकीरी में।

ना चाहिए कुछ हमको बस इतनी ही इनायत हो।
मेरे खुदा भर दे झोली सब मेरे अपनों परायों की।

बस इतना तु कर जाना मुझे तू सबमें दिखाई दे ।
इस कदर हो तु सबमें शामिल हममें भी दिखाई दें।

जब कोई साथी न सहारा हो हर ओर अंधेरा हो ।
रमजान का महीना हो तुम हमें तब भी दिखाई दे।

तू सबमें दिखे मुझको मुझे अपने पराए का भ्रम न हो।
सब तेरे ही बंदे हो ना कोई मेरा अपना या बेगाना हो।

हाथ उठाकर दुआ करती हूं आपसे कबूल हो जाए।
यह जमीं भी जन्नत सी हो जाए रमजान के महीने में।
खुदा मुझे मुआफ करे

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