सम॔दर नाराज है खुद से और खुदा से भी।
मीठे जल नदी की है मेरा जल क्यू खारा है।
नदी मीठा जल ले चलती है इठलाती वलखाती।
उसका वांकपन इतराना मेरे दिल को जलाता है।
जितनी भी गुड़ूर कर ले अपने मीठे जल पर तू।
तेरा अंतिम ठिकाना तो मेरे आगोश मे आना है।
हिम्मत इन कागज के टूकड़ो की देखो।
मेरी विशालता भी कहां इनको डराता है।
चाहूं तो मै पल मे इनका अस्तित्व ही मिटा डालू।
वो कागज नाव की शक्ल ले मुझ पर तैर जाते है।
सम॔दर एक सवाल विशालता को लेकर भी करता है।
विशालकाय हूं फिर चूलूं में भर कोई पी भी सकता है?
डरता रहता हूं मैं हरदम दिल मे भयभीत भी रहता हूं।
फिर से ना खारा जल पीने को कोई अगस्त आ जाए।
मीठे जल नदी की है मेरा जल क्यू खारा है।
नदी मीठा जल ले चलती है इठलाती वलखाती।
उसका वांकपन इतराना मेरे दिल को जलाता है।
जितनी भी गुड़ूर कर ले अपने मीठे जल पर तू।
तेरा अंतिम ठिकाना तो मेरे आगोश मे आना है।
हिम्मत इन कागज के टूकड़ो की देखो।
मेरी विशालता भी कहां इनको डराता है।
चाहूं तो मै पल मे इनका अस्तित्व ही मिटा डालू।
वो कागज नाव की शक्ल ले मुझ पर तैर जाते है।
सम॔दर एक सवाल विशालता को लेकर भी करता है।
विशालकाय हूं फिर चूलूं में भर कोई पी भी सकता है?
डरता रहता हूं मैं हरदम दिल मे भयभीत भी रहता हूं।
फिर से ना खारा जल पीने को कोई अगस्त आ जाए।
1 Comments
Sagar Vishal hokar bhi nadi se Chota hai Apne namkin pani ki wajah
ReplyDeleteSe. Wah wah kya baat kahi hai aapne. Only a writer and poet can present like this. Worth sharing. Please allow.