उड़ने के लिए पैर जमीन पर रखनी होती है।
शुरूआत जमीं से ही सभी को करनी होती है।
तुम ही कहो दोस्तों से छुपाओगे कैसे गम अपना।
दोस्त तो होठों की हंसी में छुपा दर्द भांप जाते हैं।
मन क्यू बदनाम है भटकने और भटकाने में।
जीवन पथ भी तो माहिर हैं हमें भटकाने में।
जीने की वज़ह ना हो तो मुहब्बत करके देखो।
ढाई अक्षर को जीने की वज़ह बनाकर तो देखो।
जिंदगी की कीमत मौत हमें यूं समझाती है।
जब जाती है न फिर कभी वो लौट पाती है।
सोचकर देखो क्या वहीं तुम हो जो पहले थे।
आंखों में तुम हो मैंने होंठों में इसे छूपाए थे।
तुमसे वादा रहा सो मैं मुस्कराया किया।
आंखों में ही समन्दर को सूखाया किया।
सही राहें थी फिर भी हम क्यू भटकते रहे।
पथ सही को ही ग़लत क्यू हम समझते रहे।
तरस जाएंगे अब एक दूजे के दीदार को हम।
जाएगे हैं जहां से न कभी लौटकर आएंगे हम।
समझ न पाया कोई ऐ जिन्दगी तेरा फलसफा।
तुम रहे तो समझ नहीं, जाती तो दिखती खफा।
बस इतनी इल्तज़ा है मेरी ऐ जिन्दगी
हर दोस्त को दोस्तों की सदा दरकार हो।
भींगते वारिस में भी जिसको अपने
दोस्तो के आंसूओं की पहचान हो।
शुरूआत जमीं से ही सभी को करनी होती है।
तुम ही कहो दोस्तों से छुपाओगे कैसे गम अपना।
दोस्त तो होठों की हंसी में छुपा दर्द भांप जाते हैं।
मन क्यू बदनाम है भटकने और भटकाने में।
जीवन पथ भी तो माहिर हैं हमें भटकाने में।
जीने की वज़ह ना हो तो मुहब्बत करके देखो।
ढाई अक्षर को जीने की वज़ह बनाकर तो देखो।
जिंदगी की कीमत मौत हमें यूं समझाती है।
जब जाती है न फिर कभी वो लौट पाती है।
सोचकर देखो क्या वहीं तुम हो जो पहले थे।
आंखों में तुम हो मैंने होंठों में इसे छूपाए थे।
तुमसे वादा रहा सो मैं मुस्कराया किया।
आंखों में ही समन्दर को सूखाया किया।
सही राहें थी फिर भी हम क्यू भटकते रहे।
पथ सही को ही ग़लत क्यू हम समझते रहे।
तरस जाएंगे अब एक दूजे के दीदार को हम।
जाएगे हैं जहां से न कभी लौटकर आएंगे हम।
समझ न पाया कोई ऐ जिन्दगी तेरा फलसफा।
तुम रहे तो समझ नहीं, जाती तो दिखती खफा।
बस इतनी इल्तज़ा है मेरी ऐ जिन्दगी
हर दोस्त को दोस्तों की सदा दरकार हो।
भींगते वारिस में भी जिसको अपने
दोस्तो के आंसूओं की पहचान हो।
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1 Comments
Wow...
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