कुणाल ने अपने आक्रोश को छुपाते हुए कहा- माते !आप जिसे प्यार, मुहब्बत कह रहीं हैं, वह कुछ और नहीं शारीरिक भूख मात्र है। आपको इन पर्याय, मुहब्बत जैसी शब्दों ने भ्रमित कर दिया है।
आप राजा अशोक की महारानी और इस राज्य की राजमाता के साथ ही मुझ नाचीज़ की मां है। मैं आपसे हाथ जोड़ कर विनती करता हूं ,आप अपने लिए, महाराज और इस सम्राज्य के लिए सोचे। आगे आने वाली पीढ़ी को क्या जवाब देंगी आप ?
आदरणीया यह शरीर क्षणभंगुर है, खूबसूरत सी आंखें बंद हो जाते जलकर राख हो जाएगी। सच तो यह है माते, मैं भी आपसे बहुत प्यार करता हूं। मैं आपसे मां जैसी ममता भरी प्यार की भीख मांगता हूं। आप मुझे अपना बेटा समझकर अपना लें।
तिष्यरक्षिता जो अब तक सुन रहीं थीं एकाएक तमतमा कर उठ खड़ी हुई। कुणाल आपने मुझे ठुकराया है, मेरी मुहब्बत को जलील किया है। मैं आपको कभी मुआफ नहीं कर सकती। आपने मेरी मुहब्बत देखी है,अब आप मेरी नफरत देखेंगे। ऐसा कहते पैर पटकते हुए बाहर निकल आई।
कुणाल चिन्तित मुद्रा में घंटों बैठकर सोचता रहा, क्या कुछ गलती हो गई ? दिल से आवाज़ आई नहीं तूने वही किया जो सही था, आज न कल यह बात मां तिष्यरक्षिता भी समझ जाएगी। तू अपने मन को न दुखा, तुमने अनर्थ होने से बचा लिया।
कहते हैं प्रवल इच्छा से जो चाहोगे कायनात वैसी परिस्थितियों को लेकर सामने आ जाती है। राजा अशोक के अस्वस्थ होने से तिष्यरक्षिता तन- मन- धन से उनकी तीमारदारी में जूट गई। वैसे भी वह अशोक की सबसे चहेती रानी थी। धीरे- धीरे राज्य का सारा काम काज तिष्यरक्षिता के जिम्मे आ गया।
आदरणीया यह शरीर क्षणभंगुर है, खूबसूरत सी आंखें बंद हो जाते जलकर राख हो जाएगी। सच तो यह है माते, मैं भी आपसे बहुत प्यार करता हूं। मैं आपसे मां जैसी ममता भरी प्यार की भीख मांगता हूं। आप मुझे अपना बेटा समझकर अपना लें।
तिष्यरक्षिता जो अब तक सुन रहीं थीं एकाएक तमतमा कर उठ खड़ी हुई। कुणाल आपने मुझे ठुकराया है, मेरी मुहब्बत को जलील किया है। मैं आपको कभी मुआफ नहीं कर सकती। आपने मेरी मुहब्बत देखी है,अब आप मेरी नफरत देखेंगे। ऐसा कहते पैर पटकते हुए बाहर निकल आई।
कुणाल चिन्तित मुद्रा में घंटों बैठकर सोचता रहा, क्या कुछ गलती हो गई ? दिल से आवाज़ आई नहीं तूने वही किया जो सही था, आज न कल यह बात मां तिष्यरक्षिता भी समझ जाएगी। तू अपने मन को न दुखा, तुमने अनर्थ होने से बचा लिया।
कहते हैं प्रवल इच्छा से जो चाहोगे कायनात वैसी परिस्थितियों को लेकर सामने आ जाती है। राजा अशोक के अस्वस्थ होने से तिष्यरक्षिता तन- मन- धन से उनकी तीमारदारी में जूट गई। वैसे भी वह अशोक की सबसे चहेती रानी थी। धीरे- धीरे राज्य का सारा काम काज तिष्यरक्षिता के जिम्मे आ गया।
राजा अशोक बस एक सरकारी मोहर बन कर रह गए। तिष्यरक्षिता के लिए यह सुनहरा अवसर था।
उसने एक आज्ञापत्र लिखवाकर राजा की मुहर लगा सेवक के हाथों कुणाल के पास भेजा।
आज्ञापत्र पढ़ते ही कुणाल के पैरों तले धरती घिसक गई। दूसरे ही क्षण उसे सारा माजरा समझ में आ गया। आज्ञापत्र में उसकी दोनों आंखें निकालकर देने की आज्ञा थी, साथ में एक धारदार चाकू भी था।
उसने एक आज्ञापत्र लिखवाकर राजा की मुहर लगा सेवक के हाथों कुणाल के पास भेजा।
आज्ञापत्र पढ़ते ही कुणाल के पैरों तले धरती घिसक गई। दूसरे ही क्षण उसे सारा माजरा समझ में आ गया। आज्ञापत्र में उसकी दोनों आंखें निकालकर देने की आज्ञा थी, साथ में एक धारदार चाकू भी था।
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