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तलब हो गया

तू मिला तो सोचा नहीं एक दिन बिछड़ जाएगा।
मिलकर बिछड़ने का दर्द यू उम्र भर तड़पाएगा।

जिंदगी हर मोड़ पर हमें यूं अजमाती रही।
खोने वाले की याद हर पल मुझे आती रही।

जिंदगी जीने को मिली थी पर हमें जीना नहीं आया।
जी रहे वो मेरे वगैर मुझे उनके वगैर जीना नहीं आया।

सोचता हूं मुजरिम कह‌ दूं उन्हें जो है मुजरिम नहीं।
पर मुझको बेगुनाहों पर इल्जाम लगाना नहीं आया।

अपनी तबाही का मैं तो खुद ही सबब हो गया।
जब से तू मेरी जिंदगी का सुकूनो तलब हो गया।

पढ़ी ही नहीं तूने मेरी जिंदगी तो खुली किताब थी।
मैंने वो भी पढ़ लिया जो उसके तिजोरी में बंद था।

मुझे जीना नहीं आया

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