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पायल की झंकार चाहिए

चाकू खंजर ना तीरों या तलवारों ने।
हमें ज़ख्मी किया शब्दों के वाणों ने।

रिश्ता यह कैसा है बिछड़ कर भी साथ रहता है।
नींदें छीनकर भी जो यादो में हरदम साथ रहता है।

मुहब्बत करने वाले लगता है पीकर जाम बैठे हैं।
इंतज़ार में खड़ा हूं
शऊर से बैठे शहर के बदले मंज़र से बेजार बैठे हैं। जल

होगा हाल अपना क्या सोचकर भी हम अंजान बैठे हैं।
जानू भूलकर हम अपना हैसियत और बिसात बैठे हैं।

हम पर कल तोहमतें रूशबाईया इल्ज़ाम की बारिश हो।
फूल थे आते जिस जानिब से अब पत्थरों की बारिश हो।

मुझ पर उनका लुफ्तेकरम हो भी तो कैसे हो।
उल्फत में रकीब के सरकार गिरफ्तार बैठे हैं।

वादेशवा में रूख से आंचल न हटाइए।
उड़ते परिंदों को न यू रास्ता भूलाईए।

इंतज़ार में खड़ा हूं कब से दीदार चाहिए।
परदानशी बस पायल की झंकार चाहिए।

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