जिंदगी चलती रही रूक रूक कर फिर चलती रही।
कोई मिल गया बिछड गया फिर भी तू चलती रही।
कठिन बहुत यह राह था चलना कहां आसान था।
मै कई बार हार बैठा मगर तू शान से चलती रही।
नदी सी तेरी प्यास थी, सागर से मिलने की आश थी।
हंसते गुनगुनाते अथाह जल लिए मस्ती मे चलती रही।
चट्टानो से टकराती रही घायल जीगर तू होती रही ।
टेढी मेढी राह को रौंदते हुए पागलो सी बढ़ती रही।
सब रोकते रहे तू रूकी नही बंधन तोड़ चलती रही।
किसी की तो सुनी नही मीठा जल लिए बढ़ती रही।
आज जाने क्यो तू उदास है सागर तो तेरे पास है।
मिल गई सागर मे तू जब बता तेरी क्या पहचान है।
मीठा जल तेरा खारा हुआ तो रोने की क्या बात है।
नाहक तू अपना दिल न दुखा क्या तू अबला नारी है।
समझी न अपनी महत्ता, तू कितनी है भोली भाली।
तू तो मीठे अमृत जल वाली आंचल में तेरी हरियाली।
विशाल समुद्र दिखता भले हो अंदर से बिल्कुल है खाली।
तेरा याचक है या वह है भिखारी सोच जरा तू चूनरवाली।
सागर तो तेरा याचक बना है हाथ में खाली पात्र पड़ा है।
समुन्द्र की औकात ही क्या है खारा जल बेकार पड़ा है।
जिस दिन तेरा यह मीठा जल पास न उसमे जाएगा।
सूखा बंजर मरूभूमि कहो क्या सागर कहलाएगा ?
नदी और जिंदगी की एक जैसी ही है गति।
चलना चलते जाना ही है दोनो की नियति।
नदी का अस्तित्व खो जाता है सागर मे।
जिंदगी विलिन हो जाती है भवसागर मे।
कोई मिल गया बिछड गया फिर भी तू चलती रही।
कठिन बहुत यह राह था चलना कहां आसान था।
मै कई बार हार बैठा मगर तू शान से चलती रही।
नदी सी तेरी प्यास थी, सागर से मिलने की आश थी।
हंसते गुनगुनाते अथाह जल लिए मस्ती मे चलती रही।
चट्टानो से टकराती रही घायल जीगर तू होती रही ।
टेढी मेढी राह को रौंदते हुए पागलो सी बढ़ती रही।
सब रोकते रहे तू रूकी नही बंधन तोड़ चलती रही।
किसी की तो सुनी नही मीठा जल लिए बढ़ती रही।
आज जाने क्यो तू उदास है सागर तो तेरे पास है।
मिल गई सागर मे तू जब बता तेरी क्या पहचान है।
मीठा जल तेरा खारा हुआ तो रोने की क्या बात है।
नाहक तू अपना दिल न दुखा क्या तू अबला नारी है।
समझी न अपनी महत्ता, तू कितनी है भोली भाली।
तू तो मीठे अमृत जल वाली आंचल में तेरी हरियाली।
विशाल समुद्र दिखता भले हो अंदर से बिल्कुल है खाली।
तेरा याचक है या वह है भिखारी सोच जरा तू चूनरवाली।
सागर तो तेरा याचक बना है हाथ में खाली पात्र पड़ा है।
समुन्द्र की औकात ही क्या है खारा जल बेकार पड़ा है।
जिस दिन तेरा यह मीठा जल पास न उसमे जाएगा।
सूखा बंजर मरूभूमि कहो क्या सागर कहलाएगा ?
नदी और जिंदगी की एक जैसी ही है गति।
चलना चलते जाना ही है दोनो की नियति।
नदी का अस्तित्व खो जाता है सागर मे।
जिंदगी विलिन हो जाती है भवसागर मे।
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