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एकांकी होने का भ्रम

हम आज एकांत वातावरण में बैठे हैं अपने आप को सबसे अलग किए हुए। खिड़की दरवाजे तक बंद कर रखी है,हमने।सोच रही हूं मैं बस अकेली हूं। मैं मैं और बस में मैं।

अपने भीतर झांक कर देखा जा सकता है, अंदर चल क्या रहा है। अच्छा बहुत अच्छा लग रहा है अकेले अपने आप में होना।

अरे यह क्या ! अपने अंदर तो अंधकार ही अंधकार है और उसमें खालीपन नजर आ रहा है, तो क्या सारे उजाले बाहरी दुनिया से ही थे ,अंदर में केवल अंधकार पड़ा है।

चलो कुछ खिड़कियां खोल देते हैं। खिड़कियों को खोलते हैं दिमाग में लोगों का आना-जाना शुरू हो जाता है। कुछ जाने कुछ अनजाने ,कुछ अपने कुछ पराये, कुछ दोस्त कुछ दुश्मन सभी का ताता लगा हुआ है ,हमारे मन मस्तिष्क में। तो क्या अकेले में रहना एकांत नहीं है ? यह सब तो अभी भी ज्यों की त्यों बने हुए हैं अकेले कहां हो पाए हैं आप। एकांत में रहन तो मात्र एकांकी होने का भरम है।

नहीं- नहीं !मैं तो अपने को बहुत रोशनी दे रखी है, बहुत सारे ज्ञान बटोर रखें है, ढेरों पुस्तकें पढ़ रखी है फिर मेरे अंदर अंधेरा कैसे हो सकता है भला ? मैंने अपने आप को पहचान लिया है क्या यह भ्रम है। अपनी पुस्तक है जिसे मैंने पढ़ी क्या उनसे कुछ भी नहीं पाया। कहीं ऐसा तो नहीं अंधेरे को जीना ही जिंदगी है।

सोचती हूं अंदर जो अंधेरा है क्या यही जीवन है? क्या यहां पर उजाला लाया जा सकता है ? सवाल का जवाब आसान है जी हां ला सकते हैं, उजाला भी दूर नहीं है बस थोड़ी साधना करनी पड़ेगी।

जीवन में जो अभाव है जो दुख है उसे दूर नहीं किया जा सकता ,जब तक जीवन है यह चलता रहेगा और दूर करना भी क्यों है ?

अगर जीवन से अभाव और दुख मिट जाए तो जीवन का अर्थ ही समाप्त हो जाएगा। यह दुख और अभाव को देखा तो लगा यह तो जाने पहचाने हैं बाहर से तो आए लगते नहीं है। नहीं यह बाहर से नहीं आया है अपने अंदर ही जन्म लिया हैं। बाहरी दुखों अभावों को दूर कर भी लिया जाए तो अंदर में जो खोखलापन है उसको भरा नहीं जा सकता। कितना भी कोशिश कर लो दुख और अभाव का अस्तित्व हमारे जीवन में बना ही रहेगा।

फिर चिंता किस बात की दुख को दूर करने की, अभाव को दूर करने की, अपने को पूर्ण करने की। मनुष्य कभी पूर्ण हुआ भी है क्या ? शायद हां भी है , शायद नहीं भी। अभाव क्या है भाग का ना होना अभाव है क्या ?

 शायद हां। जब अकेले में आप खुद से बातें करते हो खुद को अपना दोस्त समझते हो तो फिर आपके पास दुख और अभाव रह ही नहीं जाता, आप अपने दोस्त खुद होते हो तो समझो दोस्ती कितनी पक्की होगी। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपने आप को कभी अपना दोस्त मानने की कोशिश ही नहीं करते।

मान लिया जाए कि जिंदगी से आभाव, दुख दूर हो गए। तब तुम और खाली हो जाएंगे ना दुख को दूर करने और अभाव को दूर करने में व्यस्त रहते थे, अब वह भी नहीं रहा तो हम और खाली - खाली हो जाएंगे।

आपने दरिद्रता तो देखी होगी गरीबों में देखी होगी चिथड़ो में लिपटे हुए लोगों में देखी होगी क्या आपने कभी ऐसी दरिद्रता देखी है जो समृद्धि में दिखाई दे।

बात तो कुछ अटपटी सी है लेकिन सही है जो गरीबों में दिखाई देने वाली दरिद्रता है वह दूर की जा सकती है क्योंकि वहां पर बाहरी वस्तु जिसे हम लोग धन कहते हैं उसका अभाव है लेकिन,जो समृद्ध लोग हैं उनमें जो दरिद्रता है वह दरिद्रता भाव का अभाव है, प्रेम का अभाव है, विश्वास का अभाव है, संतोष का अभाव है, और सत्य का अभाव है। आपको समझ आ ही गई होगी कि ,यह दरिद्रता अंदर की है बाहर से नहीं है, इसके लिए इसको दूर करने के लिए हमें इसकी कोशिश करनी होगी।

 हमें प्रेम ,विश्वास, संतोष अपने आप में अंदर से लाने होंगे अंदर से लाने के लिए एकांत में बैठकर अभ्यास करने होंगे।

समृद्धि की दरिद्रता

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